Thursday 19 January 2017

                                  डॉ. प्रवीण शुक्ल जी के साथ  साक्षात्कार


गतिज: आपको अपनी कविता की कला अपने पिताजी श्री बृजशुक्ल जी से विरासत में मिली है लेकिन एक कवि के जीवन में काफी कठिनाइयाँ होती हैं, 
फिर भी आपने इसी क्षेत्र में रूचि क्यों दिखाई , आखिर किस चीज़ ने आपको इतना प्रेरित कर दिया कि आपको इसी क्षेत्र में आना है ?

महोदय: कविता जो है वह स्वतः स्फूर्त कला है | बाकी बाद में आप इसे परिस्कृत तो कर सकते हैं |अपनी कविता को सुधार भी सकते हैं परन्तु जैसे कि बिना बीज के कोई वृक्ष नहीं बन सकता , इसी प्रकार जो कविता है वह एक बीज है जो परमात्मा के द्वारा प्रदत्त बीज है जिसे आपको पहचानना है |
जब मैं कक्षा सात में था तभी मैंने कविता लिखना शुरू कर दिया था | कक्षा बारहवीं तक मैं १५० कविताएँ लिख चूका था | हर कविता के नीचे मैं अनोखे कार्टून वाली हस्ताक्षर करता था | जब मैंने मंच पर अपनी पहली कविता पढ़ी तब तक मैं २१६ कविताएँ लिख चुका था | उस समय मैं बी.ए कर रहा था | लोगों ने मेरी कविताएँ पसंद की, मुझे सराहा फिर वहीं से इसमें  रुचि बढ़ने लगी और मुझे आगे अवसर मिलने लगे | 

अंकिता: वैसे तो महोदय आपने काफी कवियों को पढ़ा है ,फिर भी आपके पसंदीदा कवि कौन हैं और उनकी कोई रचना जो आपको अच्छी लगती है ?

महोदय:   यदि आप बात करते हैं पुराने कवियों की तो मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में जिन्हें सबसे ज्यादा पढ़ा वो हैं "सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी" | 
उस समय मैं सबसे ज्यादा प्रभावित निराला जी से हुआ था | मैं बी.एऔर एम.ए करते समय उन्ही को पढ़ा करता था | मेरे विभिन्न रसों में लिखने के पीछे निराला जी ही हैं | 
उन्होंने सभी रस में कुछ ना कुछ जरूर लिखा है | १९३६ में निराला जी ने लिखी "राम की शक्ति पूजा" जो की वीररस में शामिल है , एक उपन्यास उन्होंने लिखा 
जिसका नाम है "बिल्लेश्वर बकरीदार" जो की हास्यरस से है | उन्होंने संस्कृत में भी कई छंद लिखे | प्रेम के गीत "प्रिय यामिनी" में लिखे | उन्होंने तुलसीदास पर भी 
कविता लिखी यानि उन्होंने कोई भी रस नहीं छोड़ा और मुझे ऐसा लगा कि मुझे भी ऐसा करना चाहिए और ईश्वर कि कृपा से मैंने भी लिखा और लोगों ने पसंद भी किया |

गतिज:       "तुम्हारे लबों की एक मुस्कान देती है खुशी मुझको,
                  मगर बेहद रुलाते हैं तुम्हारी आँख के आँसु |"
एक दृढ नौजवान कवि वीररस के प्रभाव में आकर विरोधियों के सिर फोड़ने की बात भी करता है, भला आंसुओं से इतना प्रभावित क्यों हो जाता है ?

महोदय: मैं abv-iiitm के छात्रों को एक ही बात कहूँगा कि हमें अपने कर्म को धर्म मानकर करना चाहिए, उसके बदले में हमें क्या मिलेगा ये बाद कि बात है |  उससे हमें प्रसंशा मिलेगी ,निराशा मिलेगी या सफलता मिलेगी कोई फर्ख नहीं पड़ना चाहिए | कोई उद्देश्य छोटा या बड़ा नहीं होता बस मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ करना है 
यह सोचकर  सारे कार्य करो तो सफलता अपने आप आपके पास आना शुरू हो जाती है | आप लोगों के प्रिय बनने लगते हैं | "कर्म को धर्म मानकर करो" यह वाक्य  बहुत छोटा है लेकिन इसका अर्थ बहुत बड़ा है | इसमें आपकी पूरी दिनचर्या आ जाती है | आपका अपने माता-पिता से रिश्ता , अपने मित्रों के साथ प्यार , अपने बड़ों 
के साथ आदर और सबकुछ जो आप अपने पुरे दिन में करते हैं | मुझसे बहुत लोग कहते हैं कि आप आदमी हैं या मशीन इतने सारे काम आप एक साथ कैसे कर लेते हैं,क्योंकि मैं दिल्ली पाँच स्कूल चलाता हूँ ,पाँच संस्थानों का मैं चेयरमैन हूँ , मैं लेक्चरार की नौकरी करता हूँ और हिंदुस्तान के कई सारे कवि सम्मलेन में लगातार चलने वाला कवि हूँ | मैं कहता हूँ की यह सब बहुत आसान है ,मुझे सिर्फ अपने कर्म को धर्म मानकर करना है | जिस दिन मैं सोच लूंगा कि मैं काम कर रहा हूँ उस दिन मैं थकना शुरू हो जाऊँगा |मेरा  मानना है कि ये काम काम नहीं है बल्कि ईश्वर बल्कि ईश्वर के दिए हुए अवसर हैं | इसलिए कुछ मत सोचिये जो काम सामने है उसे सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर दीजिए |  

रिपोर्टर : अंकिता यादव                                     एडिटर: पुष्पक धाकड़  
               गतिज  जैन 

                                तुषा शर्मा जी के साथ साक्षात्कार 




गतिज: आपका एक गीत है -------
   "ये ढीले ढक्कन होते हैं " जो कि पति-पत्नी के रिश्ते पर आधारित हैं | हमारे कॉलेज के वरिष्ठ सहपाठी जल्द ही इस वर्ग में शामिल होने वाले हैं , आप उनके लिए कुछ कहना चाहेंगी ?

महोदया: वैसे तो हास्य रस मेरा मुख्य रस नहीं है | मेरा मुख्य रस श्रृंगार है पर "वाह क्या बात है" में मुझे एक दिन यह अवसर मिला कि मैं हास्य लिखूँ और उसका शीर्षक था -
"आजकल के पति" तब मैंने यह लिखा था | मैं आपके वरिष्ठ सहपाठियों के लिए बस यही कहना चाहूंगी कि एक पति का पत्नी के जीवन में काफी अहम भूमिका होती है और यदि इस भूमिका में दोनों एक दूसरे पर समर्पित रहेंगे तो जीवन , भविष्य , आने वाला जो कल होगा वह बहुत खुशहाल होगा | इस रिश्ते में प्यार भी जरुरी है,एकता भी और  नोकझोंक भी जरुरी है | इसलिए इस रिश्ते को जीवन में अच्छे से निभाइएगा|


अंकिता :वैसे  तो महोदया आपने काफी कवियों को पढ़ा होगा फिर भी आपके पसंदीदा कवि कौन हैं और उनकी क्या बातें आपको अच्छी लगती हैं ?

महोदया: मैं महादेवी वर्मा जी और निराला जी को पसंद करती हूँ और जयशंकर प्रसाद जी भी मुझे पसंद हैं |कुछ निम्नलिखित पंक्तियाँ जो जयशंकर प्रसाद
जी द्वारा लिखी गयीं हैं मुझे बेहद पसंद हैं ---
                     "प्यारे जियो ,जगहित करो,दैह चाहे नान ,
                      प्राणा धारे ,तरुण सरले ,प्रेम की मूर्ति राधे |
                      निर्मा ताने अथक ,तुमसे क्यों किया मुझे अलग ||"
पहले मैं वीर रस लिखा करती थी फिर मैंने इन पंक्तियों से प्रेरित होकर श्रृंगार रस लिखना शुरू किया |


रिपोर्टर : अंकिता यादव                                   एडिटर :पुष्पक धाकड़ 
               गतिज जैन 

                                          पदम अलबेला  जी के साथ साक्षात्कार 



गतिज : वैसे तो महोदय आपके पास कभी शीर्षक की कमी नहीं हुई , फिर भी आपने बुढ़ापेपन के चैलेंज को ही इतनी तवज्जो क्यों दी है ?

महोदय: बुढ़ापा ऐसा है--- कि
            "हँसते खेलते बचपन बीता , बीती वो तरुणाई ,
             जीवन भर कालिख धोई तब जरा सफेदी आई |
             कुछ भी करलो, यह मन भर लो जब तक यह जवानी है ,
             किन्तु बुढ़ापा तो देखो नवजीवन की अगुवाई है || "
एक और सन्देश आप उत्थान वालों  के लिए ------
             "तीरथ छोडो मन को जोड़ो ,कहीं दूर मत जाओ जी ,
              माता-पिता की सेवा करके ,जीवन सफल बनाओ जी |"


अंकिता: महोदय आपको कविता लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?

महोदय: मैं स्कूल में जब कक्षा पाँच में था तब से मुझे लिखने का शौक था |
           "आदत जो ना जाए वही आदत होती है |"
             मेरा प्रेम का मतलब सिर्फ वासना नहीं होता ,प्रेम भाई और बहिन में भी होता है ,प्रेम हम माँ-बाप से भी करते हैं ,
             प्रेम हम अपने प्रिय से भी करते हैं |
            "मेरे जैसा आचरण करें जो बूढ़े लोग ,
             उन्हें कभी नही भांपता गृह-क्लेश का मोह |"
   
             "जवानी और बुढ़ापे में बहुत संघर्ष होता है ,
              यह मन की मौज-मस्ती है ,चरम उत्कर्ष  होता है ,
              बुढ़ापे पर मत जाओ यह मन कभी बूढ़ा नहीं होता |"

अंकिता: नवयुवाओं को आप क्या सन्देश देना चाहते हैं ?

महोदय: आप सभी यहाँ किसी न किसी उद्देश्य से आए हैं ,उसे पूरा कीजिये | अपने अपने माता-पिता  ,दादाजी की इच्छा जो आपके प्रति है ,
उस पर खरे उतरें और जीवन में एक नेक युवक बनें | आपकी जिंदगी में आंसू नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं हैं क्योंकि आंसुओं का मतलब है संवेदना |
आंसू जो हैं वह हमारी मुस्कानों की ज़मीन है | मुस्कान की खेती आँसुओं के साथ ही होगी | जिस आदमी को रोना नहीं आता उस आदमी को हँसने का भी अधिकार नहीं है |
यदि आँसु  आपके  पास नहीं है तो आप कुछ भी हो सकते हैं पर एक कवि नहीं हो सकते,एक लेखक नहीं हो सकते | यह जो कविता किसका आपने उल्लेख किया है,
यह जब मैं बी.एड कर रहा था तब उन दिनों किसी को देखकर उसके आँसुओं के लिए लिखी थी |
                 "कभी जब याद आते हैं तुम्हारे आँख के आँसु ,
                  मुझे बेहद सताते हैं तुम्हारे आँख के आँसु |
                  लबों पर मुस्कान आपके देती  है ख़ुशी मुझको ,
                  मुझे बेहद रुलाते हैं तेरी आँख के आँसु |
                  कभी तुम आँख में अपनी इन्हे लाना ना भूल से ,
                  किसीका दिल दुखते हैं तुम्हारी आँख के आँसु |"

रिपोर्टर : अंकिता यादव                                       एडिटर :पुष्पक धाकड़ 
              गतिज  जैन  

Wednesday 5 October 2016

कावेरी जल विवाद


जल का महत्व जीवन के लिए इतना अधिक है कि, एक राष्ट्र या प्रांत के  अस्तित्व की कल्पना जल संसाधानो के बिना की ही नही जा सकती! जल वैसे तो जीवनदाई तत्वो मे गिना जाता है, पर पिछले दिनो के घटनक्रमो से हताशा भाव की उत्पत्ति होना स्वाभाविक है| वैसे तो जल के अभाव की समस्या से संपूर्ण विश्व झूज रहा है| जल संसाधनो की असमान प्राकृतिक वितरण से उपजी समस्याएं संपूर्ण विश्व पटल पर दिखाई देती है| सूखे जैसी समस्यायें भी विश्व के विभिन्न भागो मे आम है, पर क्या इन समस्याओ को लेकर विवादास्पद  बयान देना, उपद्रव फैलाना व सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करना मात्र भर इसका उपाय है? पिछले दिनो के घटनक्रम मे चर्चा मे रहे  कावेरी जल विवाद से तो शयद हमारी इसी मानसिकता का निष्कर्ष सामने आता है…
 
कावेरी विवाद पिछले कई दशको मे कई बार सामने आया है, विवाद का स्तर पिछले दिनो इतना अधिक बढ़ गया की इसने दो भाषा  वाले प्रदेशो के बीच की दूरी ओर बढ़ा दी| संपत्ति के नुकसान की तुलना से  कहीं अधिक, इसने भारतीय अखंडता व एकता का खंडन चित्रित किया है| विवादस्पद होने से  कहीं ज़्यादा  हमारे लिए यह शर्मनाक है की भारत जैसे राष्ट्र के दो राज्यों के बीच इस तरह लड़ाई हो, जैसे वे दो अलग देश हैं|  राजनीतिक नेतृत्व इस पूरे मामले पर मूक दर्शक सा बना हुआ है| कुछ राजनैतिक गलियारो से कुछ सकारात्मकता के विचार आए भी पर  शायद ही उनसे नागरिको पर असर दिखाई दिया हो|  इस विवाद से कई बड़े शहरो बेंगलुरू समेत मांड्या, मैसूर, चित्रदुर्गा और धारवाड़ जिलों में हिंसात्मक प्रदर्शन हुआ जिसमे सार्वजनिक व लोक  संपत्तियो को छतिग्रस्त करने के साथ साथ वाहनो को जलाया गया| हेगानहल्ली इलाके में पुलिस फायरिंग से एक नागरिक की मौत हो गई| दूसरी ओर तमिलनाडु मे भी 30 बसों और ट्रकों को आग के हवाले कर दिया गया | तमिल नाडु मे कन्नड़ समुदाय के लोगो पर हमले भी किए गये, हालाकि राजनैतिक पक्ष ने इस बात का खंडन किया|  जयललिता जी ने मुख्यमंत्री भूमिका से हालत को काबू करने के लिए आवश्यक कार्यवाही की सुनिश्चितता को बढ़ाया| उन्होंने समस्या को उस हद तक जाने के पहले ही संभाल लिया कि यह अंधाधुंध हिंसा तक पंहुच जाए|  नदी जल संबंधी सभी अंतराज्जीय समझौते को रद्द करने के कर्नाटक के एक तरफा फैसले ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिसका अनुभव हमारे देश ने पहले कभी नहीं किया था|
तथ्यो के अनुसार माननीय उच्चतम न्यायलय ने 20 सितंबर तक कर्नाटक से तमिलनाडु के लिए 15,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया था, और इसके बाद से ही कर्नाटक में हिंसक घटनाओं की शुरुआत हो गयी|  बाद में 12 हज़ार क्यूसेक पानी छोड़ने की बात भी कही गयी, किन्तु हिंसक स्थितियों पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा|  अगर इस कावेरी नदी की भौगोलिक स्थितियों की बात करें तो पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत से निकलकर कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल व पुडुचेरी में कोई आठ सौ किलोमीटर की यात्रा करके बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर अंग्रेजों के जमाने से ही विवाद मौजूद है|  ऐतिहासिक दस्तावेजों पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि वर्ष 1924 में उस समय के मैसूर और मद्रास राज्य के रजवाड़े तक आमने सामने आ गए थे, तो अंग्रेजी हुक्मरानों ने दोनों के बीच एक समझौता करा दिया था, जिसमें मैसूर को कावेरी जल का प्रथम, जबकि मद्रास को दूसरा लाभार्थी माना गया था|  कालांतर में इस विवाद ने और भी उग्र रूप में तब आकर लिया जब आजाद भारत में 1972 में कांग्रेस की आयरन-लेडी इंदिरा गांधी की सरकार थी|  बड़ी मशक्कत के बाद उन्होंने इससे जुड़े चारों राज्यों-कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के बीच एक समझौता कराया था| इस समझौते का आधार यह था कि नदी जिस राज्य के भू-भाग से जितनी ज्यादा गुजरती है, पानी में भी उसका उतना ही हिस्सा होगा|  देखा जाए तो यह एक संतुलित संधि थी, किन्तु कर्नाटक ने इस संधि की अवहेलना करनी शुरू कर दी थी और फिर इन विवादों के सन्दर्भ में, 1986 में तमिलनाडु ने तत्कालीन केंद्र सरकार से विवाद के निपटारे के लिए एक अलग से न्यायाधिकरण बनाने की मांग की, जो चार वर्ष बाद 1990 में पूरी हुई|  न्याय करने की कोशिश फिर हुई, जब स्थापित न्यायाधिकरण ने तय कर दिया कि कर्नाटक तमिलनाडु को कितना पानी हर साल देगा और पानी कब-कब छोड़ा जाएगा|  दुर्भाग्य से इस पर न तो कर्नाटक ने ठीक से अमल किया और ना ही तमिलनाडु ने और फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा|  सवाल वही है कि अगर भारतीय राज्य और उसके नागरिक ही शीर्ष अदालती आदेश का सम्मान  नहीं करेंगे तो करेगा कौन? वह भी तब जब कोर्ट का निर्णय बेहद व्यवहारिक प्रतीत होता है|  विवाद होने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में संशोधन भी किया, किन्तु नतीजा वही ढाक के तीन पात ही रहा|  आखिर वह आंदोलनकारी आसमान से आकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना तो कर नहीं रहे हैं, बल्कि इसके पीछे साफ़ तौर पर राजनीतिक पार्टियां लाभ-हानि की दृष्टि से राजनीति करती प्रतीत हो रही हैं|  बेहद शर्मनाक है कि भारत में सबसे सम्मानित और विकसित शहर के तौर पर मशहूर, भारत के आईटी हब बेंगलुरू की प्रतिष्ठा का भी ध्यान नहीं किया गया|  साफ़ है कि वहां पर जो हिंसा हुई है, उसके कारण वहां काम कर रही देशी-विदेशी कंपनियों को दुबारा सोचने पर मजबूर होना पड़ा होगा|  सहज ही कल्पना की जा सकती है कि अगर किसी कंपनी का वहां एक्सपेंशन का प्लान होगा तो वह उसे टाल भी सकती है|  पॉपुलर सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर ने अपने 'बेंगलुरु ऑफिस' से कामकाज समेटने की बात भी कही है|  हालाँकि, सीधे तौर पर ट्विटर और कावेरी जल-विवाद  का कोई अन्तर्सम्बन्ध नहीं है किन्तु आने वाले दिनों में वहां के नागरिकों को इस बाबत सोचने को तैयार रहना ही होगा|  

अब प्रश्न यह उठता है कि जीवन के लिए मूलभूत जल का मूल्य अब जीवन से भी बढ़ गया है? क्या हमारी भौगौलिक व सामुदायिक छवि इतनी अधिक प्रभावशाली हो गई है कि हम अपने ही देश के पड़ोसी समुदाय के लोगो को केवल इसलिए हिंसात्मक तरीके से प्रताड़ित करें? क्या हमारी समस्याओं का समाधान महात्मा गाँधी के उन सिद्धांतो मे नही ढूँढा जा सकता जो अहिंसा के मूल पत्थर पर टिके हैं?  और ये ज़िम्मेदारी तो राज्य सरकारो की बनती है कि वो क़ानून व्यवस्था को सुचारु रूप से सशक्त करें ताकि जब भी ऐसे विपरीत कठिनाई के बादल आए तब हमारी आम जनता को अधिक छाति ना देखनी पड़े| हम नागरिको व राजनैतिक नेताओ को यह सोचना होगा की चुनावी फ़ायदे के बजाय समस्याओं के उन समाधान की ओर केंद्रित हों जिसमे दोनो पक्षो की ज़रूरतों को ध्यान में रखा गया जाए | हमारी न्याय व्यवस्था के उच्चतम न्यायालय के आदेशो की गरिमा को बनाए रखना हमारे उन्हे स्वीकार करने मे ही सम्मिलित है, साथ ही यह हमारा कर्तव्य है की समाज के उन समूहो जो न्यायिक फ़ैसलो के खिलाफ हिंसात्मक शड्यंत्रो की रचना करते है, उन्हे उन्मूलित लिया जाए|  ऐसे विवाद नदी जोड़ो परियोजना के कई स्तर पर देखने को मिले हैं, पर हमारी सरकारें इन विषयों मे अधिक रूचि नही लेती प्रतीत होती है|  वही दूसरी ओर  के सम्मिलित होने से भ्रष्टाचार की संभावनाए बढ़ने के कारण जल पुरुष राजेंद्र सिंह जैसे लोग 'नदी जोड़ो परियोजना' का विरोध कर रहे हैं, जिनसे वर्तमान सरकार को सामंजस्य बिठाने की आवश्यकता है|  स्टाकहोम प्राइज से सम्मानित राजेंद्र सिंह एवं दूसरे कई विशेषज्ञ इसके बजाय समाज से नदियों को जोड़ने एवं तालाब इत्यादि विकल्पों को सुझा रहे हैं| अब यह  भार हमारी सरकारो के उपर जाता  है  कि वो सुनिश्चित  करें कि भविष्य मे नीतियो मे विवादास्पद मोड़ ना आए ताकि भारत को फिर से कावेरी जल आपदा का सामना न करना पडे| निष्कर्ष शायद इस प्रश्न मे चित्रित है की जल की शीतलता को पाने के लिए यदि हम समाज मे अधिक भिन्नताओ के बीज बोएंगे तो क्या आने वाली पीढ़ी के लिए इस जल की शीतलता का कोई मूल्य बच पाएगा?

Monday 26 September 2016

रिलायंस जियो
                                                 
                     
वंदनीया माँ सरस्वती, सभी पाठकों को मेरा नमस्कार जैसा कि आप सभी को विदित है कि अभी हाल ही में रिलायंस समूह के प्रमुख मुकेश अम्बानी ने घोषणा की है की उनकी कंपनी जियो सिम उपलब्ध कराएगी जिसमें दिसम्बर 2016 तक 4G इंटरनेट की सेवा बिलकुल मुफ़्त रहेगी। इसके अलावा उसमें हर तरह के फ़ोन कॉल, वॉयस कॉल तथा रोमिंग की सुविधा भी मुफ़्त रहेगी। उनकी इस घोषणा के पश्चात भारत के डिजिटल बाजार में जबरदस्त हलचल मची हुई है। जिओ की घोषणा के बाद से ही बाकी सभी टेलिकॉम कंपनियों एयरटेल,वोडाफोन एवं आईडिया में बेचैनी बढ़ गयी है। घोषणा वाले दिन ही ये तथ्य सामने आया की जिओ से बाकी टेलिकॉम कंपनियों को करीब ग्यारह हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। हालांकि 3-4 महीने मुफ़्त 4G इंटरनेट सेवा प्रदान करने से रिलायंस को भी नुकसान उठाना पड़ेगा पर ये उनका अपना सर दर्द है। लगभग सभी टेलिकॉम कंपनियों ने जिओ पर सवाल उठाते हुए कहा कि कोई कंपनी कैसे तीन महीने के लिए सब कुछ मुफ़्त दे सकती है? सभी ने ये भी सवाल उठाया कि रिलायंस जिओ अपने सभी वादे पूरे करने में नाकाम रहेगी क्योंकि मुफ़्त होने की वजह से सभी आम लोग जिओ की तरफ रुख करेंगे जिसके परिणामस्वरूप जिओ के लिए अपनी सेवा की गुणवत्ता को बनाये रखना अत्यंत कठिन होगा। बाद में जिओ ने भी बाकी टेलिकॉम कंपनियों पर आरोप लगाये की वे सभी जिओ से आने वाली कॉल को ड्राप कर रहे है। ताकि जिओ बाजार से बाहर हो जाये। हालाँकि ये मुद्दा सभी कंपनियों की एक सामूहिक बैठक में हल हो गया। इस घोषणा के बाद से ही आम लोगों की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं है क्योंकि जिओ की बाजार में बढ़ती भीषण मांग के कारण सभी ने अपनी सेवाओं के शुल्क में कटौती करना शुरू कर दिया है।
जिओ की घोषणा का एक सबसे बड़ा फायदा तो यही हुआ है, जिससे भारत का हर वर्ग डिजिटल क्रांति से जुड़ गया। काफी टेलिकॉम कंपनियों ने जिओ की घोषणा बाद अपने सेवा शुल्क में काफी कटौती क़ी है, नहीं तो इसके पहले प्रायः यही खबर आती थी कि सेवा शुल्क में इजाफा, भले कोई भी टेलिकॉम कंपनी क्यों हो? इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जिओ ने भारत में चल रही डिजिटल क्रांति में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। जिओ से विद्यार्थियों को भी बहुत लाभ होगा बशर्ते सही दिशा में जिओ का सदुपयोग किया जाये। जिओ के दूसरे पहलू भी है, जिओ 3-4 महीने मुफ़्त सुविधा देगा इसके बाद इसका सेवा शुल्क क्या होगा अभी तक कंपनी ने यह पूर्णतः स्पष्ट नही किया ह। जिओ ने व्यापार का बेहद कारगर तरीका निकाला है की मुफ़्त में बांटो और जब लत लग जाये तब सेवा शुल्क लो। मैंने खुद देखा है क़ि जब जिओ से दुसरे ऑपरेटर को फ़ोन लगाओ तो लगता नही और अगर लग गया तो कॉल की गुणवत्ता बहुत ख़राब है। स्पष्ट है की दूसरी कंपनियों का संशय उचित ही था। अगर सब कुछ मिला जुला कर देखा जाये तो यही परिणाम निकलता है कि जिओ ने डिजिटल क्रांति में एक नई ऊर्जा का संचार किया है जिसका सीधा लाभ आम लोगों को मिलेगा।
- आर्यन सचान(आई०पी०जी० प्रथम वर्ष)