आज के आधुनिक युग में बहुत से ऐसे लोग है, जिन्होंने अपने कार्यो ने के साथ साथ कार्य करने की शक्ति घटती जाती है | परन्तु जिन लोगो के हौसले बुलंद होते है, कुछ कर गुजरने की चाह होती है, मन में अपार इच्छाशक्ति व संकल्पशक्ति होती है, ऐसे लोगो के सामने सारीसे उम्र को पीछे छोड़ दिया है | यह उक्ति सच ही है कि हमारे शरीर के कार्य करने की एक सीमा है | उम्र बढ़ बाधाए घुटने टेक देती है, ऐसे व्यक्तियों में आत्मशक्ति कूट कूट कर भरी होती है | वे अपने अन्दर की भावनाओ व इच्छाओ को कभी मरने नही देते | युवा किसी आयु अवस्था का नाम नही है |
वो कहते है न, "मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है |"
जो व्यक्ति कार्य करने में सक्षम होता है , वह कभी स्वयं को लाचार महसूस नहीं करता | बहुत से लोग उम्र बढ़ने के साथ साथ सोचने लगते है की अब तोह हमारी उम्र हो गयी है | अब हमसे ये नही हो सकता | उनकी यही प्रक्रिया उन्हें निर्बल बना देती है | व्यक्ति जितना कार्य अपने शरीर से करता है, उससे कई गुना कार्य वह अपने मस्तिष्क से करता है | यदि मन की शक्तियां ही मरणशील हो जाए, तो फिर सब कुछ असंभव सा लगने लगता है |
"कोई भी मनुष्य चाहे कितना भी बड़ा ज्ञानी हो या प्रशिक्षित हो, वह तब तक अज्ञानी रहता है जब तक उसे ज्ञान का अनुभव न हो"
जिस प्रकार दूध से माखन निकालने के लिए बहुत मेहनत लगती है , ठीक उसी प्रकार अनुभव प्राप्त करने के लिए जिन्दगी के कई पड़ाव पार करने पड़ते है | परन्तु एक बार ये प्राप्त हो जाने के बाद अपने ये लोग अपने अनुभव से दूसरो की मदद भी करते है और अपने कार्यो की खुशबू से समाज को महकाते भी है |
-संजिका कुमारी
वो कहते है न, "मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है |"

"कोई भी मनुष्य चाहे कितना भी बड़ा ज्ञानी हो या प्रशिक्षित हो, वह तब तक अज्ञानी रहता है जब तक उसे ज्ञान का अनुभव न हो"
जिस प्रकार दूध से माखन निकालने के लिए बहुत मेहनत लगती है , ठीक उसी प्रकार अनुभव प्राप्त करने के लिए जिन्दगी के कई पड़ाव पार करने पड़ते है | परन्तु एक बार ये प्राप्त हो जाने के बाद अपने ये लोग अपने अनुभव से दूसरो की मदद भी करते है और अपने कार्यो की खुशबू से समाज को महकाते भी है |
जीवन उमंग, उत्साह एवं उद्देश्य से ही परिभाषित होता है, उम्र से नहीं |
-संजिका कुमारी
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