Monday 19 January 2015

आज का मानव और मानवता

विधाता की इस विशाल सृष्टि में मानव ही उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति है, जिसे 'BEST CREATION OF THE GOD" के नाम से भी जाना जाता है | ऐसा क्यों कहा जाता है इसका आधार क्या है, जब हम इस बात का पता लगाने की कोशिश करते है, तो हम पाते है कि अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर एक-दूसरे के लिए जीवन समर्पित कर देने का नाम ही मनुष्यता है |
               कविवर गुप्त जी के शब्दों में- "यही तो पशु प्रवृति है कि आप आप ही चरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे |" इस प्रकार आदि काल से ही विधाता द्वारा प्रदत इस अलौकिक ज्ञान के प्रकाश तले मानव ने अपना उत्कृष्ठ जीवन बिताना प्रारंभ किया, जिसे देख देवताओं को भी इर्ष्या हो उठी | वे भी इस देव दुर्लभ मानव शरीर को प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो उठे |
             कविवर तुलसीदास जी के शब्दों में-
"बड़े भाग मानुस तन पावा,सुर दुर्लभ सब ग्रन्थ निगावा"
            परन्तु अब इसे मानव जाति का दुर्भाग्य कहा जाय या किसी देवता का अभिशाप कि आज अपनी अहमन्यता और स्वार्थपरता से विकारग्रस्त होता हुआ मानव पशुता के कगार पर खड़ा है | यह मानव किसी विशेष देश का नहीं है , अपितु यह मानव सम्पूर्ण विश्व का है, यहा चर्चा सम्पूर्ण विश्व के मानवों की हो रही, जो आज अपने उदर की भूख मिटाने के लिए भले ही अन्न का प्रयोग करते हो परन्तु अपनी मानसिक भूख मिटाने के लिए मानवता को खाते जा रहे है |
             आज अगर देश के कर्णधार नेता से लेकर सामान्य जनता तक उन बलिदानियों को गिने चुने शब्दों में श्रधांजलि अर्पित करने का नाटक करके ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान ले तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा |  दुर्भाग्य उस देश का जहाँ पश्चिमी सभ्यता के चूल्हे में अपनी मर्यादा का ईंधन जलाने वालों की कमी नहीं है, दुर्भाग्य उस देश का जहाँ मात्र धनवान बनने के लिए अपने राष्ट्र की अस्मिता को चौराहे पर खड़ा  करके बेचने वालों की कमी नही है | लंदन के चौक के घड़ियाल की आवाज़ तो हम अपने रेडियो पर सुन लेते है, परन्तु दर्द से कराहते अपने पड़ोसी की चीखे हमें सुनाई नही देती |
          और तो और अगर बात की जाए हमारे राजनेताओं की तो उन्होंने भी इस देश को भवर में डुबोने के उद्देश्य से पतवारे फेक दी है | अरे, "यदि भवर दिखाना ही ता माँ को, क्यों बापू बलिदान हुए,
                                        क्यों शहीद हुआ वो भगत सिंह, बिस्मिल सुखदेव के प्राण गए,
                                        क्यों चमकी झाँसी की रानी और प्राण ताजे इस माती में,
                                       होना था जब फिर नर सिंघार अपनी कश्मीर की घाटी में'
                                       क्यों घायल होता रहा हिमालय, क्यों भारत माता सहती रही,
                                       क्या देख स्वर्ग से माँ की दशा आज़ाद की छाती नहीं फटी"
        परन्तु भोगवाद में जीवन व्यतीत करने वाले इन् राजनेताओं को ऐसी भावनाओं से क्या लेना | दूसरी ओर हमारी भारतीय जनता तो दिन प्रतिदिन ऐसे मनुष्यों का गढ़ बनती जा रही है जो अपने कर्मक्षेत्र में ध्रतराष्ट्र बनकर जीने में ही स्वर्ग की प्राप्ति समझते है |
       आज का मानव पूरी तरह से कर्महीन बन चुका है | उसका जीवन यन्त्र की भांति सीमित हो चुका है | यन्त्र का भी कोई कार्य होता है | चलते- चलते गिर जाना ही उसकी इष्ट है | समझ में ही नही आता जीवन है क्या. क्या करने आये थे और क्या कर डाला, बस जब आँख खुली और समझने लायक हुए तो एक ही उद्देश्य सामने दिखा कि अपना स्वार्थ साधो और निकलते बनो यहा से | राष्ट्र हमे कुछ देने नही आ रहा, मिटने दो राष्ट्र को बस स्वयं को देखो | शायद इसी सांस्कृतिक विघटन की वजह से आज हमारा भारतवर्ष एक ऐसे कगार पर आकर खड़ा हो गया कि जहा से कोई भी शत्रु राष्ट्र बड़ी आसानी से इसे चोट पहुचा कर निकल जाता है, और हमारे राष्ट्र के नेतागढ़ सिद्धान्तों की माला हाथ में लिए अहिंसा वादी बन जाते है | चूकि शायद इसी अहिंसावाद की वजह से कही न कही उनके निजी स्वार्थों की भी पूर्ति होती है |
      आज के भारतवर्ष की एक छोटी सी तस्वीर तो मैंने आपके समक्ष प्रस्तुत कर दी, परन्तु कल का भारतवर्ष कैसा होगा ये आप पर ही निर्भर है | अब दो पंक्तियों के साथ मै अपने शब्दों को विराम देना चाहूंगी-
                                          "जीवन की माया छोड़ मूर्ख, जीवन पानी सा बहता है,
                                           लुट जाते सब झूठे वैभव, बस नाम धरा पर रहता है |"
                                                                                                   
                                                                                                                           - सौम्या त्रिपाठी

Sunday 18 January 2015

माँ

कब्र की आगोश में जब थककर सो जाती है माँ, तब कही जाकर थोडा शुकून पाती है माँ
फ़िक्र में बच्चो की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ, कि नौजवा होते हुए भी बूढी नजर आती है माँ
कहते है कि रिश्तों की गहराईयों को तो देखिए, चोट लगती है हमें और दर्द को उठाती है माँ
खुद रातों की नींद उड़ाकर, बच्चों को लोरी में डुबाकर सुलाती है माँ
घर से परदेश जाता है जब नुरे-नज़र, हाथ में कुरान लेकर दर पर आ जाती है माँ


जब भी घिरते है हम परेशानी में, आँसू पोछने खाबों में आ जाती है माँ
खुशियों में भले ही हम भूल जाये माँ को, गम में पर हमेशा याद आती है माँ
लौट कर जब हम आते है थक कर, प्यार भरे हाथों से सिर को सहलाती है माँ
शुक्रिया उसका अदा हो नही सकता, मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ
मरते दम तक जब बच्चा न आये परदेश से, पुतलिया दोनों अपनी चौखट पर छोड़ जाती है माँ
प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज़ है, ये तो उनसे पूछो जिनकी बचपन में ही मर जाती है माँ |
                                                                                 
                                                                              - मोना सिंह















Friday 16 January 2015

किताबें : सच्ची मित्र ...

आपने अक्सर सुना होगा की पढाई एक तपस्या है, जिसने यह तपस्या पूरी कर ली, वह समझो सागर को पार कर गया | मेरे इस विषय अर्थात् किताबें सबसे अच्छी व सबसे सच्ची दोस्त का अभिप्राय क्या है ,चलिए इस तथ्य का पता लगाने की एक छोटी सी कोशिश साथ मिलकर करते है | किताबें, सच्ची मित्र किस प्रकार से है, इससे पहले हमें यह जानना है कि सच्चा मित्र आखिर कौन होता है, क्या है इस शब्द का अभिप्राय | बात यह है कि मित्रता मेरे व्यक्तिगत जीवन का एक अभिन्न व बहुमूल्य अंग है | ऐसा कब, कहाँ और कैसे हुआ अगर इसकी बात करेंगे तो एक नयी कहानी बन जाएगी तो अभी इस बात को छोड़कर इस तथ्य पर विचार करते है कि क्यों न दोस्ती की शुरुआत किताबो से ही की जाए | सच्चा दोस्त : एक एहसास जिसमे विश्वास होता है कि हम कितनी भी बड़ी मुसीबत में क्यों न हो ,वह हम पर विश्वास व् हमारी मदद जरूर करेगा, इसी प्रकार किताबो पर लिखा ज्ञान हमें हर पल हर मुसीबत से बाहर खींचता है | जितना आप अपने इस नए दोस्त के साथ समय बिताओगे उतनी ही दोस्ती गहरी और अटूट होती जाएगी | कभी कभी तो रात रात भर वार्तालाप चलती रहती है ,कहीं कहीं बहस भी शुरू हो जाती है, कभी कभी गीतों के साथ आप अपने इस नए दोस्त के संग किसी गहरे विषय में उलझे होगे | कई सवाल उठेंगे कई जवाब मिलेंगे | एक बार रात भर जाग कर तो देखो अपने इस नए दोस्त के साथ , सर्वमान्य तथ्य है कि ऐसी आनंद की प्राप्ति आपको जीवन में कभी न होगी | ऊंच –नीच, जात-पात से ऊपर उठकर होती है ये दोस्ती | जब कभी आप अपने इस नए मित्र को पर्याप्त समय नहीं दे पाओगे तो आपको स्वयं आभास होगा की आज कुछ छूट रहा है कुछ कमी सी है, जैसे जिन्दगी हथेली से छूट रही हो जैसे कोई ट्रेन छूट रही हो | बहुत सी नयी चीजे सीखने को मिलेगी आपको | आप असल में स्वयं को पहचान पाओगे, खुद से मिल पाओगे | जिस पल आपकी किताबो से सच्ची मित्रता हो गयी ,उस दिन से न ही पढाई बोझ लगेगी और न ही तपस्या | बस एक कर्तव्य का आभास होगा  आपको अपने इस नए दोस्त के प्रति | एक प्रेम एक लगाव की अनुभूति होगी और आपका यह नया दोस्त आपको उस ऊंचाई तक पहुंचा देगा, जहाँ सम्पूर्ण संसार आपके कदमो तले हो |


                                                                   - सौम्या त्रिपाठी