Thursday 19 January 2017

                                  डॉ. प्रवीण शुक्ल जी के साथ  साक्षात्कार


गतिज: आपको अपनी कविता की कला अपने पिताजी श्री बृजशुक्ल जी से विरासत में मिली है लेकिन एक कवि के जीवन में काफी कठिनाइयाँ होती हैं, 
फिर भी आपने इसी क्षेत्र में रूचि क्यों दिखाई , आखिर किस चीज़ ने आपको इतना प्रेरित कर दिया कि आपको इसी क्षेत्र में आना है ?

महोदय: कविता जो है वह स्वतः स्फूर्त कला है | बाकी बाद में आप इसे परिस्कृत तो कर सकते हैं |अपनी कविता को सुधार भी सकते हैं परन्तु जैसे कि बिना बीज के कोई वृक्ष नहीं बन सकता , इसी प्रकार जो कविता है वह एक बीज है जो परमात्मा के द्वारा प्रदत्त बीज है जिसे आपको पहचानना है |
जब मैं कक्षा सात में था तभी मैंने कविता लिखना शुरू कर दिया था | कक्षा बारहवीं तक मैं १५० कविताएँ लिख चूका था | हर कविता के नीचे मैं अनोखे कार्टून वाली हस्ताक्षर करता था | जब मैंने मंच पर अपनी पहली कविता पढ़ी तब तक मैं २१६ कविताएँ लिख चुका था | उस समय मैं बी.ए कर रहा था | लोगों ने मेरी कविताएँ पसंद की, मुझे सराहा फिर वहीं से इसमें  रुचि बढ़ने लगी और मुझे आगे अवसर मिलने लगे | 

अंकिता: वैसे तो महोदय आपने काफी कवियों को पढ़ा है ,फिर भी आपके पसंदीदा कवि कौन हैं और उनकी कोई रचना जो आपको अच्छी लगती है ?

महोदय:   यदि आप बात करते हैं पुराने कवियों की तो मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में जिन्हें सबसे ज्यादा पढ़ा वो हैं "सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी" | 
उस समय मैं सबसे ज्यादा प्रभावित निराला जी से हुआ था | मैं बी.एऔर एम.ए करते समय उन्ही को पढ़ा करता था | मेरे विभिन्न रसों में लिखने के पीछे निराला जी ही हैं | 
उन्होंने सभी रस में कुछ ना कुछ जरूर लिखा है | १९३६ में निराला जी ने लिखी "राम की शक्ति पूजा" जो की वीररस में शामिल है , एक उपन्यास उन्होंने लिखा 
जिसका नाम है "बिल्लेश्वर बकरीदार" जो की हास्यरस से है | उन्होंने संस्कृत में भी कई छंद लिखे | प्रेम के गीत "प्रिय यामिनी" में लिखे | उन्होंने तुलसीदास पर भी 
कविता लिखी यानि उन्होंने कोई भी रस नहीं छोड़ा और मुझे ऐसा लगा कि मुझे भी ऐसा करना चाहिए और ईश्वर कि कृपा से मैंने भी लिखा और लोगों ने पसंद भी किया |

गतिज:       "तुम्हारे लबों की एक मुस्कान देती है खुशी मुझको,
                  मगर बेहद रुलाते हैं तुम्हारी आँख के आँसु |"
एक दृढ नौजवान कवि वीररस के प्रभाव में आकर विरोधियों के सिर फोड़ने की बात भी करता है, भला आंसुओं से इतना प्रभावित क्यों हो जाता है ?

महोदय: मैं abv-iiitm के छात्रों को एक ही बात कहूँगा कि हमें अपने कर्म को धर्म मानकर करना चाहिए, उसके बदले में हमें क्या मिलेगा ये बाद कि बात है |  उससे हमें प्रसंशा मिलेगी ,निराशा मिलेगी या सफलता मिलेगी कोई फर्ख नहीं पड़ना चाहिए | कोई उद्देश्य छोटा या बड़ा नहीं होता बस मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ करना है 
यह सोचकर  सारे कार्य करो तो सफलता अपने आप आपके पास आना शुरू हो जाती है | आप लोगों के प्रिय बनने लगते हैं | "कर्म को धर्म मानकर करो" यह वाक्य  बहुत छोटा है लेकिन इसका अर्थ बहुत बड़ा है | इसमें आपकी पूरी दिनचर्या आ जाती है | आपका अपने माता-पिता से रिश्ता , अपने मित्रों के साथ प्यार , अपने बड़ों 
के साथ आदर और सबकुछ जो आप अपने पुरे दिन में करते हैं | मुझसे बहुत लोग कहते हैं कि आप आदमी हैं या मशीन इतने सारे काम आप एक साथ कैसे कर लेते हैं,क्योंकि मैं दिल्ली पाँच स्कूल चलाता हूँ ,पाँच संस्थानों का मैं चेयरमैन हूँ , मैं लेक्चरार की नौकरी करता हूँ और हिंदुस्तान के कई सारे कवि सम्मलेन में लगातार चलने वाला कवि हूँ | मैं कहता हूँ की यह सब बहुत आसान है ,मुझे सिर्फ अपने कर्म को धर्म मानकर करना है | जिस दिन मैं सोच लूंगा कि मैं काम कर रहा हूँ उस दिन मैं थकना शुरू हो जाऊँगा |मेरा  मानना है कि ये काम काम नहीं है बल्कि ईश्वर बल्कि ईश्वर के दिए हुए अवसर हैं | इसलिए कुछ मत सोचिये जो काम सामने है उसे सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर दीजिए |  

रिपोर्टर : अंकिता यादव                                     एडिटर: पुष्पक धाकड़  
               गतिज  जैन 

                                तुषा शर्मा जी के साथ साक्षात्कार 




गतिज: आपका एक गीत है -------
   "ये ढीले ढक्कन होते हैं " जो कि पति-पत्नी के रिश्ते पर आधारित हैं | हमारे कॉलेज के वरिष्ठ सहपाठी जल्द ही इस वर्ग में शामिल होने वाले हैं , आप उनके लिए कुछ कहना चाहेंगी ?

महोदया: वैसे तो हास्य रस मेरा मुख्य रस नहीं है | मेरा मुख्य रस श्रृंगार है पर "वाह क्या बात है" में मुझे एक दिन यह अवसर मिला कि मैं हास्य लिखूँ और उसका शीर्षक था -
"आजकल के पति" तब मैंने यह लिखा था | मैं आपके वरिष्ठ सहपाठियों के लिए बस यही कहना चाहूंगी कि एक पति का पत्नी के जीवन में काफी अहम भूमिका होती है और यदि इस भूमिका में दोनों एक दूसरे पर समर्पित रहेंगे तो जीवन , भविष्य , आने वाला जो कल होगा वह बहुत खुशहाल होगा | इस रिश्ते में प्यार भी जरुरी है,एकता भी और  नोकझोंक भी जरुरी है | इसलिए इस रिश्ते को जीवन में अच्छे से निभाइएगा|


अंकिता :वैसे  तो महोदया आपने काफी कवियों को पढ़ा होगा फिर भी आपके पसंदीदा कवि कौन हैं और उनकी क्या बातें आपको अच्छी लगती हैं ?

महोदया: मैं महादेवी वर्मा जी और निराला जी को पसंद करती हूँ और जयशंकर प्रसाद जी भी मुझे पसंद हैं |कुछ निम्नलिखित पंक्तियाँ जो जयशंकर प्रसाद
जी द्वारा लिखी गयीं हैं मुझे बेहद पसंद हैं ---
                     "प्यारे जियो ,जगहित करो,दैह चाहे नान ,
                      प्राणा धारे ,तरुण सरले ,प्रेम की मूर्ति राधे |
                      निर्मा ताने अथक ,तुमसे क्यों किया मुझे अलग ||"
पहले मैं वीर रस लिखा करती थी फिर मैंने इन पंक्तियों से प्रेरित होकर श्रृंगार रस लिखना शुरू किया |


रिपोर्टर : अंकिता यादव                                   एडिटर :पुष्पक धाकड़ 
               गतिज जैन 

                                          पदम अलबेला  जी के साथ साक्षात्कार 



गतिज : वैसे तो महोदय आपके पास कभी शीर्षक की कमी नहीं हुई , फिर भी आपने बुढ़ापेपन के चैलेंज को ही इतनी तवज्जो क्यों दी है ?

महोदय: बुढ़ापा ऐसा है--- कि
            "हँसते खेलते बचपन बीता , बीती वो तरुणाई ,
             जीवन भर कालिख धोई तब जरा सफेदी आई |
             कुछ भी करलो, यह मन भर लो जब तक यह जवानी है ,
             किन्तु बुढ़ापा तो देखो नवजीवन की अगुवाई है || "
एक और सन्देश आप उत्थान वालों  के लिए ------
             "तीरथ छोडो मन को जोड़ो ,कहीं दूर मत जाओ जी ,
              माता-पिता की सेवा करके ,जीवन सफल बनाओ जी |"


अंकिता: महोदय आपको कविता लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?

महोदय: मैं स्कूल में जब कक्षा पाँच में था तब से मुझे लिखने का शौक था |
           "आदत जो ना जाए वही आदत होती है |"
             मेरा प्रेम का मतलब सिर्फ वासना नहीं होता ,प्रेम भाई और बहिन में भी होता है ,प्रेम हम माँ-बाप से भी करते हैं ,
             प्रेम हम अपने प्रिय से भी करते हैं |
            "मेरे जैसा आचरण करें जो बूढ़े लोग ,
             उन्हें कभी नही भांपता गृह-क्लेश का मोह |"
   
             "जवानी और बुढ़ापे में बहुत संघर्ष होता है ,
              यह मन की मौज-मस्ती है ,चरम उत्कर्ष  होता है ,
              बुढ़ापे पर मत जाओ यह मन कभी बूढ़ा नहीं होता |"

अंकिता: नवयुवाओं को आप क्या सन्देश देना चाहते हैं ?

महोदय: आप सभी यहाँ किसी न किसी उद्देश्य से आए हैं ,उसे पूरा कीजिये | अपने अपने माता-पिता  ,दादाजी की इच्छा जो आपके प्रति है ,
उस पर खरे उतरें और जीवन में एक नेक युवक बनें | आपकी जिंदगी में आंसू नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं हैं क्योंकि आंसुओं का मतलब है संवेदना |
आंसू जो हैं वह हमारी मुस्कानों की ज़मीन है | मुस्कान की खेती आँसुओं के साथ ही होगी | जिस आदमी को रोना नहीं आता उस आदमी को हँसने का भी अधिकार नहीं है |
यदि आँसु  आपके  पास नहीं है तो आप कुछ भी हो सकते हैं पर एक कवि नहीं हो सकते,एक लेखक नहीं हो सकते | यह जो कविता किसका आपने उल्लेख किया है,
यह जब मैं बी.एड कर रहा था तब उन दिनों किसी को देखकर उसके आँसुओं के लिए लिखी थी |
                 "कभी जब याद आते हैं तुम्हारे आँख के आँसु ,
                  मुझे बेहद सताते हैं तुम्हारे आँख के आँसु |
                  लबों पर मुस्कान आपके देती  है ख़ुशी मुझको ,
                  मुझे बेहद रुलाते हैं तेरी आँख के आँसु |
                  कभी तुम आँख में अपनी इन्हे लाना ना भूल से ,
                  किसीका दिल दुखते हैं तुम्हारी आँख के आँसु |"

रिपोर्टर : अंकिता यादव                                       एडिटर :पुष्पक धाकड़ 
              गतिज  जैन