Sunday 18 January 2015

माँ

कब्र की आगोश में जब थककर सो जाती है माँ, तब कही जाकर थोडा शुकून पाती है माँ
फ़िक्र में बच्चो की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ, कि नौजवा होते हुए भी बूढी नजर आती है माँ
कहते है कि रिश्तों की गहराईयों को तो देखिए, चोट लगती है हमें और दर्द को उठाती है माँ
खुद रातों की नींद उड़ाकर, बच्चों को लोरी में डुबाकर सुलाती है माँ
घर से परदेश जाता है जब नुरे-नज़र, हाथ में कुरान लेकर दर पर आ जाती है माँ


जब भी घिरते है हम परेशानी में, आँसू पोछने खाबों में आ जाती है माँ
खुशियों में भले ही हम भूल जाये माँ को, गम में पर हमेशा याद आती है माँ
लौट कर जब हम आते है थक कर, प्यार भरे हाथों से सिर को सहलाती है माँ
शुक्रिया उसका अदा हो नही सकता, मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ
मरते दम तक जब बच्चा न आये परदेश से, पुतलिया दोनों अपनी चौखट पर छोड़ जाती है माँ
प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज़ है, ये तो उनसे पूछो जिनकी बचपन में ही मर जाती है माँ |
                                                                                 
                                                                              - मोना सिंह















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