Thursday 1 October 2015

गाँधी जयंती

“अहिंसा का पुजारी , सत्य कि राह दिखाने वाला
इमान का पाठ पढ़ा गया हमे , वो बापू लाठी वाला”

बापू , हाँ हम उन्हें प्यार से इसी नाम से पुकारते थे | उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था , जो कि हमारे देश के राष्ट्रपिता के नाम से भी जाने जाते हे | इनका जन्म २ अक्टूबर १८६९ को गुजरात के पोरबंदर में हुआ | उन्हीं के विश्वास एवम् विवेक से हम अंग्रेजों के राज से आजाद हो सके | उन्हीं की याद में हम २ अक्टूबर को गाँधी जयंती मनाते हैं , जिससे कि हम कम से कम वर्ष में एक बार उस महान पुरुष को याद कर सकें | इस दिन सभी स्कूलों और शासकीय संस्थानों में सरकारी अवकाश होता हैं|
       गाँधी जी के पिता करमचंद गाँधी राजकोट के दीवान थे | उनकी माता का नाम पुतलीबाई था | वह धार्मिक विचारों वाली महिला थी | गाँधी जी पर उनकी माता के गुणों का ज्यादा असर था क्योंकि वह भी धार्मिक विचारों के साथ काम करते थे |
       गाँधी जी ने अपनी वकालत की शिक्षा  इंग्लैंड से प्राप्त की | वहाँ से लौटने पर उन्होंने कुछ समय तक भारत में भी वकालत करी | उन्होंने हमेशा सत्य और अहिंसा का साथ दिया तथा भारत के स्वतंत्रता अभियान को नई राह दिखाई |
       गाँधी जयंती का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि हम गाँधी जी को याद करें उन्हें श्रद्धांजलि दे भूल जाएँ बल्कि हमें  उनके विचारों को अपने जीवन में पिरोना होगा हमें उनकी दिखाई गयी राह पर चलना होगा , हमें एक ऐसे देश का निर्माण करना होगा जहाँ सत्यता एवम् अहिंसा सर्वोपरी हो , तभी हम गाँधी जी के प्रति अपने सम्मान को व्यक्त कर पाएंगे |
-पुष्पक धाकड़  

Wednesday 30 September 2015

गणेश महोत्सव





 देश में गणेश चतुर्थी का पर्व हर्ष एवम उलास के साथ  मनाया जाता  है | हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष

भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी को हिन्दुओं का प्रमुख पर्व गणेश चतुर्थी मनाया जाता है | गणेश पुराण में वर्णित

कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले , कृपा के सागर तथा भगवान

शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्रीगणेश जी का आविर्भाव हुआ था |

भगवान विनायक के जन्मदिवस पर मनाया जाने वाला यह महापर्व भारत के सभी प्रान्तों में हर्षोल्लास

पूर्वक और भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है | इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व अबिवा-भारतीय

सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान , ग्वालियर में भरपूर हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है | देश के

लगभग सभी शहरों और गाँवों में जगह जगह मूर्तियों को स्थापित किया जा रहा है |

भगवान श्रीगणेश का हमारे जीवन में कितना धार्मिक महत्त्व है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि

किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में उनका स्मरण किया जाता है | शास्त्रों में दिलचस्पी रखने वाले आचार्य

आख्यानंद कहते हैं कि भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है | उन्हें बुद्धि , समृद्धि और वैभव का

देवता मानकर उनकी पूजा कि जाती है |

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ 

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा |

-अंकिता यादव 

Monday 21 September 2015

साक्षरता अभियान


शिक्षा का मकसद है एक खाली दिमाग में परिवर्तन करना | साक्षरता अर्थात पढने और लिखने की क्षमता से संपन्न होना होना | आज विश्व के सामने कई  मुसीबतें मुँह खोले पड़ी है, जिनमे सर्वाधिक गंभीर है अशिक्षा |

शिक्षा के महत्व को समझते हुए विश्व का हर देश अपनी शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त  करने के लिए सभी तरह के तिकड़म अपनाता है | भारत में भी कुछ लोगो ने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का बेड़ा उठाया है और Make a Difference नाम की मुहीम उठाई है | जो भारत के पुरे २३ शहरो में जारी है जिससे जरूरतमंदो को शिक्षा प्रदान करते है एवं उन्हें  जीवन जीने का एक बेहतर  सिखाया जाता है |

जब से Make a Difference ने यह बेड़ा उठाया है | तब से भारत कि साक्षरता बढी है| make a difference मे असाक्षरता को पिछे धकेलने हेतु बहुत से प्रयास किये है अतः वे सफ़ल रहे है अतः इसके अनतरगत Back-A-Thon नाम से आयोजन करवाया गया जिसके अंतर्गत बहुत से विद्यार्थीयो व बहुत लोगो ने पीछे चलकर असाक्षरता को पिछे धकेलने का प्रयास किया व बच्चों शिक्षा कि ओर अग्रसर किया |


“उचतम शिक्षा वह नही है जो आपको मात्र सुचनाए प्रदान करती है, उच्चतम शिक्षा वह है जो आपको सम्पुर्ण अस्तित्व और एक बेहतर भविष्य व एक बेहतर इन्सान बनाती है |”

-अंकिता यादव

रक्तदान जीवनदान


विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल १४ जून को रक्तदान दिवस मनाया  जाता है | ‘रक्तदान महादान है’ – नामक कई पंक्तिया आज भी देश में प्रचलित हैं | हमारे द्वारा किया गया रक्तदान कई जिंदगियों को जीवन प्रदान करता हैं| इस बात का एहसास हमें तब होता है जब हमारा कोई अपना खून के लिए जिन्दगी और मौत के पालने में झूल रहा होता है उस वक्त हम नींद से जागते है उसे बचने हेतु रक्त के इंतजाम की जद्दोजहद  करते है |

अनायास दुर्घटना या बीमारी का का शिकार हम में से कोई भी हो सकता है | आज हम सभी शिक्षित व् सभ्य समाज के नागरिक है, जो केवल अपनी नहीं बल्कि दूसरो की भलाई के लिए भी सोचते है तो क्यों नही हम रक्तदान के पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान करे उर लोगो को जीवनदान दे |

सभ्यता के विकास की दौड़ में मनुष्य भले ही कितना आगे निकल जाए , पर जरूरत पर आज भी एक मनुष्य भी दुसरे को अपना रक्त देने में हिचकिचाता है | विश्व स्वाथ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत है लेकिन उपलभ ७५ लाख यूनिट ही हो पता है यानी करीब २५ लाख यूनिट के अभाव में हर साल सैकड़ो या लाखो मरीज दम तोड़ते है |
रक्तदान के विषय में  अ. बि. वा. भारतीय सूचना प्रोद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान , ग्वालियर के द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में बहुत से विद्यार्थियों ने अपना रक्त देकर अपने देश में रक्त की जरूरतमंदों को नयी जिन्दगी प्रदान की |

देशभर में रक्त हेतु नाको,रेडक्रास जैसी कई सन्थाए लोगो में रक्तदान के प्रति जागरूकता फ़ैलाने का प्रयास कर रही है परन्तु इनके प्रयास तभी सार्थक होंगे जब हम स्वंय रक्त दान के लिए आगे आयेंगे व् औरों को भी इसके लिए प्रेरित  करेंगे |

“हजारों वर्षों तक इंसान ने इंसान का खून बहाया,
धरती के इतिहास में पहली बार मौका आया कि

इंसान का खून इंसान के काम आया | “

-अंकिता यादव

Saturday 22 August 2015

जिन्दगी

                                   "जिन्दगी"
हर एक दिन एक किताब के पन्नो की तरह पलट रहे है हम , कुछ पर दिल मुस्कुरा उठता तो कुछ पर हो जाती आँखे नम , पर क्या कभी किसी ने इस कहानी के पीछे छुपे भावार्थ को जानने की कोशिश की है | इस धरती पर अपने अस्तित्व के उद्देश्य को जानने की कोशिश की है | क्या करने आये है और क्या करते जा रहे | जिन्दगी का सच आखिर है क्या ? जो चाहा क्या उसे पाने की कोशिश पूरी शिद्दत से की या उसका ना मिलना भाग्य में लिखा कहकर टाल दिया | जो पाया क्या कभी सोचा था , जो सोचा था वो मिला या नही , क्या कभी स्वयं से पूछा अगर मिला तो कैसे और क्या सच में यही सोचा था और अगर नही तो क्यूँ | जो मिला क्या वो रास आ रहा है | क्यों अक्सर खोयी हुई चीज़े याद आती है और पायी हुई चीज़े सम्भाली जाती नही | क्यों अजीब सी पहेली है जिंदगी जिसे कोई सुलझा पाता नही | जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो क्यों अक्सर लोग पीछे हट जाते | क्यों नही समझते कि - 
          “ झुकता वही है जिसमे जान होती है, अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है |” 
जिन्दगी जीने के दो तरीके होते है – पहला जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो और दूसरा जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो | 
         “जिंदगी जीना आसान नही होता, बिना संघर्ष कोई महान नही होता, 
          जब तक न पड़े हथौड़े की चोट, पत्थर भी भगवान नही होता ||” 
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है, कभी हसती है कभी रुलाती है, पर जो हर हाल में खुश रहते है, जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है | छोटी सी जिंदगी का सच इन्ही छोटे छोटे सवालो में कही छिपा है | 
         “ चेहरे की हसी से हर गम चुराओ, बहुत कुछ बोलो पर कुछ न छुपाओ,
         खुद न रूठो कभी पर सबको मनाओ, राज़ है जिंदगी का ये बस जीते चले जाओ ||” 

Tuesday 18 August 2015

सामाजिक कल्याण रोट्रेक्ट के साथ

संस्थान में स्वन्त्त्रता दिवस का पर्व बड़े   हर्षोल्लास के साथ मनाया गया कार्यक्रम का प्रारम्भ ध्वजारोहण के साथ हुआ इसके बाद राष्ट्रगान हुआ अतः विद्यार्थियों ने अपनी अपनी कला का प्रदर्शन  किया    निर्देश्क महोदय  अथवा  मुख्य  अथितियों   के अनमोल  वचनो  ने  सभी  को  मार्गदर्शन  दिया    संस्थान  के  क्लब  रोट्रैक्ट  क्लब   के प्रमुख  श्रीमान  अमन  दीप सचान  ने अपने  विचार  प्रकट  किये    उन्होंने  सभी  से  सामाजिक कल्याण के लिए समय निकालने  के लिए अनुरोध किया उन्होंने कहा, "अगर सभी लोग थोड़ा थोड़ा योगदान दे  तो  अपना देश विकास की राह  पर अग्रसर होगा" साथ ही उन्होंने यह भी बताया की वह यह कार्य बहुत पहले से करते रहे हे और आगे भी करते रहेंगे भविष्य की योजनाओ के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा की ये तो  प्रथम वर्ष के छात्रों पर निर्भर करता हे की वह इस क्लब को कितना आगे ले कर जाते हे इसी  क्लब की सदस्य श्रेया सिन्हा ने कहा ,"हमें शुरुआत छोटे छोटे लक्ष्यों से करनी चाहिए , क्यों की बून्द बून्द से सागर भरता हे " उन्होंने अपने अनुभव को  सबके साथ बांटते हुए कहा ," यह क्लब उनकी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा रहा हे " साथ ही उन्होने  बताया की उन्हें अपने संस्थान  और ग्वालियर रोटरी  क्लब से अच्छी  सहायता मिली उन्होंने कहा ,"सब को अपने ह्रदय की बात सुननी चाहिए और  कोई ऐसा काम करना चहिये जिससे उनके ह्रदय को संतुष्टि मिले "साथ ही उन्हों ने बताया की जब वह छोटे छोटे बच्चो की मदद करती हे और उनके चेहरों पर ख़ुशी लाने मे कामयाब हो जाती हे तो यह उनके के लिए अत्यधिक आनंदमय अनुभव होता हे इसी  के साथ उन्होंने हम सभी को एक सन्देश दिया की," प्रत्येक व्यक्ति को  slum development, social development, आदि जैसे मुद्दो पर विचार करना  चाहिए और अपने आप से जितना हो सके उनकी मदद करने की कोशिश करनी चाहिए       

                                                                                                                       :-पलक जैन

                                                                                                                                                                                                                        

                                                                                                                                                

Monday 17 August 2015

स्वतंत्रता दिवस

भारतीय स्वतंत्रता संग्रांम के अनेक अध्याय है जिसमे जलियावाला नरसंहार से लेकर सत्याग्रह तक अनेक ह्रदय को कपा देने वाली घटनाएँ सम्मिलित है | यह पर्व सम्पूर्ण भारत में अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना को जागृत करता है |
         सदियों पहले से ६८ वर्ष पूर्व तक अंग्रेज़ो के अत्याचार और अमानवीय व्यवहारों से त्रस्त भारतीय जनता अपने अधिकारों से वंचित रही हैं | अपितु हमारे महान नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत से भूख, ग़रीबी, लाचारी को धरती से मिटाकर सब भारतवासियों को बंद पिंजरे से निकालकर आकाश में उड़ाने भरने के लिए आज़ाद कर दिया | आज़ादी कहें या स्वतंत्रता ये ऐसा शब्द हैं जिसमें पूरा आसमां समाया हैं |
        इस वर्ष भारत ब्रिटिश उपनिवेश शासन से हमारी आज़ादी की ६९वी वर्षगांठ मना रहा हैं | स्वतंत्रता दिवस ऐसा पर्व है जब हम अपने शहीदों को श्रधांजलि अर्पित करते हैं | जिन्होंने विदेशी नियंत्रण से भारत को आज़ाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी | आज़ हम जिस खुली फिज़ा में सांस लेते है वो हमारे पूर्वजों के त्याग और बलिदान का परिणाम हैं | हमारी आज़ादी की लड़ाई ताक़त और रक्त रंजित प्रयोगों से नहीं अपितु सत्य और अहिंसा के परम सिद्धांतो के माध्यम से अर्जित की  गयी | यह स्वतंत्रता के संघर्ष के इतिहास में एक अनोखा अभियान था |
        अनेक विधियों की सरलता को भारतीय जनता ने समर्थन दिया तथा स्थानीय अभियान शीघ्र ही उपनिवेश शक्तियों के नियंत्रण में नहीं रहेगा | जैसे ही मध्य रात्रि हुई और जब दुनिया सो रही थी भारत ज़ाग रहा था | एक ऐसा पल आया जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर जाते हैं............क्या हम इस अवसर का लाभ उठाने हेतू पर्याप्त बहादुर और बुद्धिमान है और क्या हम भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार हैं?
       भारत के नागरिक के रूप में, हमे अपनी स्वर्ण अतीत पर गर्व हैं | आज़ एक सच्चा देशभक्त, श्रेष्ठ मानव संसाधन के रूप में विकास, प्रगति और अपने राष्ट्र के उत्थान में सर्वाधिक भूमिका अदा करता हैं |
                हर वक़्त मेरी आँखों में धरती का स्वप्न हो,
                जब कभी मरू तो तिरंगा मेरा कफ़न हों |
                और कोई ख्वाहिश नही ज़िंदगी में,

                जब कभी मरू तो भारत मेरा वतन हो ||

                                                           अंकिता यादव

Tuesday 23 June 2015

मालवीय जी के प्रयासों की छोटी सी छवि –


मित्रों, आज का मानव जीवन अत्यंत व्यस्त होता प्रतीत हो रहा, अधिकांश लोगों को इस बात का अनुमान भी नही होता कि आज जिन चीजों का वो लाभ उठा रहे है, जो स्वतन्त्र देश आज उनके सामने खड़ा है, जिस कारणों से उन्हें भारतीय होने पर गर्व महसूस होता, उसके पीछे कितने महापुरुषों के अथक प्रयासों की अमिट छाप है |    
    ऐसे ही महापुरुषों में एक नाम है – पं. महामना मदन मोहन मालवीय | जिनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते  हुए मुझे आज गौरव की अनुभूति हो रही | जिनके कर्मो की छाया तले आज हजारो विद्यार्थी स्वयं को शिक्षित होता पा रहे | ”पं. मदन मोहन मालवीय“ यह कोई व्यक्ति विशेष का नाम नही है, यह एक ऐसी शक्ति थी, जिसने मिट्टी के उपकरणों से फौलाद के हथियार डालने की क्षमता रखी | काल का चक्र किसी प्रश्रवन सील सरिता की भाति सदैव गतिमान रहता है | महापुरुष आते है और अपने कर्मो की अमिट छाप समय क वक्षस्थल पर अंकित कर जाते है, और यह विश्व उन्ही पदचिन्हों का अनुकरण करता हुआ शनै शनै प्रगति क मार्ग पर अग्रसर होता है | फिर भारतभूमि तो आदिकाल से ही रत्ना प्रस्वरी रही है | समय समय पर यहा न जाने कितने महापुरुषों ने अवतरित होकर न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व को मानवता का पाठ पढाया | महान विभूतियों की महामाला की एक जगमगाती हुई मणि हमारे दास्ताँ के दिनों में भारतभूमि पर अवतरित हुई | हिन्दू समाज ने इसे “पंडित” कहकर पुकारा तो विश्व ने उसकी “महामना” कहकर वंदना की | दोस्तों, वह एक ऐसा स्वप्नदृष्टा था, जो अपने समय में 2500 वर्ष पुराने नालंदा विश्वविद्यालय का स्वप्न देखता था | वह एक स्वप्नदृष्टा था जिसने कभी स्वप्न में तक्षशिला विश्वविद्यालय को तो कभी विक्रमशिला के विश्व विद्यालय को देखता था | इस स्वप्न ने उसे प्रेरणा दी एक ऐसा स्वप्न पालने की, जिसने धीरे धीरे मूर्त रूप लेना शुरू किया | और फिर उस मूर्त में अपने अथक प्रयासों से उसने जान फूंक दी, और देखते ही देखते काशी में गंगा के तट पर खेतों के बीच से गेरुआ वस्त्र पहन कर वो कल्पना विशाल रूप धारण करने लगी | लोगो को प्रथम दृष्टि में इस बात पर विश्वास नही हुआ, परन्तु जब अपनी कड़वाई आंखे धुल कर लोगो ने उस स्वप्न की ओर देखा तो उन्हें लगा कि ये एक ऐसा स्वप्न था जो अब सच हो चुका है, यह एक ऐसा सच था जिसे अब झुटलाया नही जा सकता | ऐसा था सृजन हमारे “काशी हिन्दू विश्वविद्यालय” का | दोस्तों, ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कुछ पंक्तिया मुझे याद आ रही कि –

“मै न बोला किन्तु मेरी आत्मा बोली,
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
पाँव होते है विचारो के नही केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है |”
    दोस्तों, बात करे यदि राजनैतिक जीवन की तो महज़ 25 वर्ष की आयु में कोलकाता में इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में उन्होंने अपना पहला भाषण दिया | और देखते ही देखते लगातार चार बार वो इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये | और इस तरह उन्होंने सकारात्मक दिशा दी सम्पूर्ण भारतीय राजनीति को | राजनीति के परिपेक्ष में एक वक्तव्य मुझे याद आता है , जब उनके एक मित्र ने बड़े ही सहज रूप से यह कह दिया था कि राजनीति में स्वयं का विकास और दूसरे का विनाश अभीस्ट है तो मालवीय जी ने बड़े ही प्रेम से यह उत्तर दिया कि घृणा है मुझे ऐसी राजनीति से जिसमे सभी के समान विकास का समान प्रावधान न हो | दोस्तों, यदि बात की जाए अधिवक्ता जीवन की तो वह ऐसा महान अधिवक्ता था जिसकी सत्य के प्रति लगन ने 150 देशभक्तों को जो चौरी-चौरा कांड में फसे थे, फांसी के तख्ते से वापस बुला लिया | अरे भाषा के लिए लड़ा तो देवनागरी लिपि को कानूनी काम काज की भाषा ही बनवा डाला | मालवीय जी को यह पता था कि अगर दुश्मन से लड़ना है तो उसकी नीतियों में निपुण होना आवश्यक है | इसीलिए अंग्रेजी हुकूमत का लगातार विरोध करते हुए भी उन्होंने कभी अंग्रेजी भाषा का विरोध नही किया | और 1909 में स्वयं “द लीडर” पत्रिका का संपादन किया |
    आज सम्पूर्ण विश्व ललायित होकर हमारी ओर देख रहा है, वह हमसे यह प्रश्न कर रहा है कि मालवीय के उस स्वप्निल भारत को हम कौन सी दिशा देते है और सम्पूर्ण विश्व यह पुकार लगा रहा है कि -
“ सुख की अति से संतृप्त देश यह देख रहे है, देखे पंडित का नया देश क्या करता है,
जीता है वह अपना अमोघ अमृत पीकर या नक़ल हमारी ही करके वह मरता है’
बस यही बिंदु, बस यही बिंदु जिस पर निर्भर है हार जीत, यह देश ध्वंसकारी युग का क्रेता होगा,
या फूंक मार अम्बर में कोई महामंत्र, विज्ञान में कलयुग का भारत नेता होगा || "
                                                    
                                                                 - सौम्या त्रिपाठी