Friday 21 February 2014

Relationship



                      Relationship
Relationship , जहाँ एक दिल दुसरे दिल के लिए धडकता है | जहाँ एक को चोट लगती  है , दर्द दूसरे को होता है | जहाँ एक कहता है की मै ठीक हूँ और दूसरा फिर भी उसकी फ़िक्र करता है | जहाँ किसी और चीज़ के लिए समय हो ना हो उस एक खास इंसान के लिए समय जरूर होता है|
Relationship एक जादू की तरह होता है | जो आँखों से शुरू होकर दिल तक पहुँचती है | Relationship जहाँ एक लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करते है ,जहाँ से शुरुआत होती है “प्यार “की | एक प्यारे जज्बात की | दुनिया में भगवान् ने सबको ये जज्बात महसूस करने और उसे उसकी मंजिल तक पहुँचाने का हक दिया है | प्यार वह ख़ूबसूरत एहसास है जहाँ एक दिल रोता है और आंसू दूसरे की आँखों से निकलते है | यह वो आकर्षण है जिससे शायद ही कोई खुद को दूर रखना चाहेगा |
आजकल Relationship बहुत तरह की हो गयी है | अब वो जमाना नहीं रहा जहाँ कहते थे कि “सिर्फ मिलन ही  प्यार का अंजाम नही है , जुदाई प्यार् की दूसरी मंजिल का नाम है |” आजकल प्यार भी लोगो की तरह मोर्डन हो गये है | आजकल प्यार की कामयाबी  शादी से होती है , नहीं तो उसे प्यार नहीं माना जाता है | पहले  प्यार घरो की छतो , कोलेजो  में , और काफी जगहों से शुरू होते थे |....... आजकल प्यार facebook , whats app , line ....... इन सब से शुरू होता है और कई लोग तो बस तिएम पास के लिए ही ये सब करते है | इसलिए आज प्यार से नहीं Relationship के नाम से जानते है | इसलिए आज प्यार को प्यार से नहीं Relationship के नाम से जानते है | कोई आजकल ये नहीं कहता कि मैं प्यार में हूँ बल्कि ये कहता है कि मैं Relationship में हूँ | “ वो कहते है न कि....”एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती है “.... वैसे ही कई लोग होते है जिनकी वजह से आज प्यार जैसे शब्द की अहमियत खत्म होती जा रही है |
दुनिया को प्यार की नजर से देखो बहुत सुंदर है | प्यार सिर्फ शुरुआत में ही जन्नत नही है , प्यार सच में जन्नत है .....एक बार सच्चे दिल से करके तो देखो .....
“ तुम मिले हर ख़ुशी मिल गई है हमें ,

लगता है कि दूसरी जिन्दगी मिल गई है हमें ,

जिन्दगी में था जिसका सालो से इन्तजार हमें ,

जीवन का साथी बिना मांगे मिल गया हमें !!! ”
                              
                                                 BY 
                                                         Dimpal singh

Thursday 6 February 2014

परस्तार



वो जो कहलाता था दीवाना तेरा
वो जिसे हिफ्ज था अफसाना तेरा
जिसकी दीवारों पे आवेजा थी
तस्वीरे तेरी
वो जो दोहराता था
तकरीरे तेरी
वो जो खुश था तेरी खुशियों से
तेरे गम से उदास
दूर रहके जो समझता था
वो है तेरे पास
वो जिसे सजदा तुझे करने से
इनकार न था
उसको दरअसल कभी तुझसे
कोई प्यार न था
उसकी मुश्किल थी
कि दुश्वार थे उसके रास्ते
जिनपे बेखोफ-खतर
घूमते रहजन थे
सदा उसकी अना की दरपे
उसने घबराके
सब अपनी अना की दौलत
तेरी तहवील में रखवा दी थी
अपनी जिल्लत को वो दुनिया की नजर
और अपनी भी निघहो से छिपाने के लिए
कामयाबी को तेरी
तेरी फुतुहात
तेरी इज्ज़त को
वो तेरी नाम तेरी शोहरत को
अपने होने का सबब जनता था
है वजूद उसका जुदा तुझसे
ये कब मानता था
वो मगर
पुर्खतर रास्तो से आज निकल आया है
वक़्त ने तेरे बराबर न सही
कुछ ना कुछ अपना करम उसपे भी फ़रमाया है
अब उसे तेरी जरूरत ही नही
जिसका दवा था कभी
अब वो अकीगत ही नहीं
तेरी तहवील में रखी थी कल
उसने अना
आज वो मांग रहा है वापस
बात इतनी सी है
ऐ साहिबे-नामो -शोहरत
जिनको कल
तेरे खुदा होने से इनकार न था
वो कभी तेरा परस्तार न था

ये कविता उसे समर्पित है जिसने मुझे और काव्य को मिलवाया | जिसने मुझे खुद के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी |


तर्क 1

प्रश्न - कांच का टूटना बुरा क्यों माना जाता  है
उत्तर - यह बात रोमन लोगों से चर्चा में आई। इनमें ऐसा माना जाता था कि कांच में जो हमारा अक्स दिखाई देता है असल में वह हमारी आत्मा होता है। और जब कांच टूट जाता है तो इसका मतलब है कि हमारी आत्मा खत्म हो गई है। यहीं से कांच का टूटने को लोग बुरा मानने लगे।

Wednesday 5 February 2014

पहचान

इससे फर्क नहीं पड़ता 
कि आदमी कहाँ  खड़ा है
पथ पर या रथ पर ?
तीर पर या प्राचीर पर ?

फर्क इससे पड़ता है की
जहाँ खड़ा है 
या जहाँ उसे खड़ा होना पड़ा है
उसका धरातल क्या है ?

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता 

टूटे मन से कोई खड़ा नही होता |

आदमी की पहचान
उसके धन या आसन से नहीं होती 
उसके मन से होती है,
मन की फकीरी पर 
कुबेर की सम्पदा भी रोती है |

Tuesday 4 February 2014

वसंत ऋतु

फिर वसंत की आत्मा आई,
मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण,
अभिवादन करता भू का मन !
दीप्त दिशाओं के वातायन,
प्रीति सांस-सा मलय समीरण,
चंचल नील, नवल भू यौवन,
फिर वसंत की आत्मा आई,
आम्र मौर में गूंथ स्वर्ण कण,
किंशुक को कर ज्वाल वसन तन !
देख चुका मन कितने पतझर,
ग्रीष्म शरद, हिम पावस सुंदर,
ऋतुओं की ऋतु यह कुसुमाकर,
फिर वसंत की आत्मा आई,
विरह मिलन के खुले प्रीति व्रण,
स्वप्नों से शोभा प्ररोह मन !
सब युग सब ऋतु थीं आयोजन,
तुम आओगी वे थीं साधन,
तुम्हें भूल कटते ही कब क्षण?
फिर वसंत की आत्मा आई,
देव, हुआ फिर नवल युगागम,
स्वर्ग धरा का सफल समागम !


                                                      रचना
                                                                       सुमित्रानंदन पंत

बाल की खाल

हर बाल की खाल की ये छाल भी खा जाए
जिसके हाथ पड़ जाए तो महीने साल भी खा जाए
किसी बेहाल का बचा हाल जो हाल खा जाए
बैमोत मरते मन का ये मलाल खा जाए
लालू का लाल खा जाए ,
नक्सवादी की नाल खा जाए
बचपन का दमाल खा जाए,
बुढ़ापे की शाल खा जाए ,
हया तो छोड़ो बेहया की भी चाल खा जाए ,
और अगर परोसा जा  सके तो ख्याल भी खा जाए |

Sunday 2 February 2014

कन्या भ्रूण हत्या


संसार का हर प्राणी जीना चाहता है और किसी भी प्राणी का जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है. अन्य प्राणियों की तो छोड़ो आज तो बेटियों की जिंदगी कोख में ही छीनी जा रही है. "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते हैं. ऐसा शास्त्रों में लिखा है किन्तु बेटियों की दिनोदिन कम होती संख्या हमारे दौहरे चरित्र को उजागर करती है. 

माँ के गर्भ में पल रही कन्या की जब हत्या की जाती है तब वह बचने के कितने जतन करती होगी यह माँ से बेहतर कोई नहीं जानता. गर्भ में 'माँ मुझे बचा लो ' की चीख कोई खयाली पुलाव नहीं है बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है. अमेरिकी पोट्रेट फिल्म एजुकेशन प्रजेंटेशन ' The Silent Scream ' एक ऐसी फिल्म है जिसमे गर्भपात की कहानी को दर्शाया गया है. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह गर्भपात के दौरान भ्रूण स्वयं के बचाव का प्रयास करता है. गर्भ में हो रही ये भागदौड़ माँ महसूस भी करती है. अजन्मा बच्चा हमारी तरह ही सामान्य इंसान है. ऐसे मैं भ्रूण की हत्या एक महापाप है. 

वह नन्हा जीव जिसकी हत्या की जा रही है उनमे से कोई कल्पना चावला, कोई पी. टी. उषा, कोई स्वर कोकिला लता मंगेशकर तो कोई मदर टेरेसा भी हो सकती थी. कल्पना चावला जब अन्तरिक्ष में गयी थी तब हर भारतीय को कितना गर्व हुआ था क्योंकि हमारे भारत को समूचे विश्व में एक नयी पहचान मिली थी. सोचो अगर कल्पना चावला के माता पिता ने भी गर्भ में ही उसकी हत्या करवा दी होती तो क्या देश को ये मुकाम हासिल करने को मिलता

जीवन की हर समस्या के लिए देवी की आराधना करने वाला भारतीय समाज कन्या जन्म को अभिशाप मानता है और इस संकीर्ण मानसिकता की उपज हुयी है दहेज़ रुपी दानव से. लेकिन दहेज़ के डर से हत्या जैसा घ्रणित और निकृष्ट कार्य कहाँ तक उचित है ? अगर कुछ उचित है तो वह है दहेज़ रुपी दानव का जड़मूल से खात्मा. एक दानव के डर से दूसरा दानविक कार्य करना एक जघन्य अपराध है और पाशविकता की पराकाष्ठा है. 

हिंसा का यह नया रूप हमारी संस्कृति और हमारे संस्कारों का उपहास है. नारी बिना सृष्टि संभव नहीं है. ऐसे में बढ़ते लिंगानुपात की वजह से वह दिन दूर नहीं जब 100 लड़कों पर एक लड़की होगी और वंश बेल को तरसती आँखे कभी भी तृप्त नहीं हो पायेगी. 




हसरते

जो तुम साहिल की बाते सुन पाती

तो तुम जान लेती मै क्या सोचता हूँ ||

वो विधा जो तुम्हे भी जान पाती ,

तो तुम जान लेती मै क्या सोचता हूँ ||

वो आवाज तुमको भी जो भेद जाती ,

तो तुम जान लेती में क्या सोचता हूँ ||

मासूमियत का जो तुम्हारे पर्दा सरकता ,

खिड़कियो से आगे भी देख पाती ,

आँखों से आदतों की जो पलके हटाती,

तो तुम जान लेती मै क्या सोचता हूँ ||

 

 

जो ख्वाब देखे मैंने काश उन्हें जान जाती ,

मेरी मंजिलो को पाने में साथ निभा पाती ,

मेरी तरह होता अगर खुद पर जरा भरोसा

तो कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आती ||

महक गगन की जो चूमती तुम्हे ,

ख्वाइशे तुम्हारी नया जन्म पाती ,

खुद दुसरे जन्म में मेरी  हम्न्फ्ज बनने ,

कुछ दूर तुम भी साथ साथ आती ||

जो मेरे चक्षु में बहते नीर को देख पाती ,

तो मेरी भावनाओकी धारा को समझ पाती ,

तब कुछ दूर तुम भी साथ साथ आती||

तब कुछ दूर तुम भी साथ साथ आती ||

दिल का पैगाम

हर बार दिल से ये पैगाम आए ;
जुबा खोलू तो तेरा ही नाम आए ;
तुम ही क्यू भाये दिल को क्या मालूम;
जब नजरो के सामने हसीन तमाम आए |