मित्रों, आज का मानव जीवन अत्यंत
व्यस्त होता प्रतीत हो रहा, अधिकांश लोगों को इस बात का अनुमान भी नही होता कि आज
जिन चीजों का वो लाभ उठा रहे है, जो स्वतन्त्र देश आज उनके सामने खड़ा है, जिस कारणों
से उन्हें भारतीय होने पर गर्व महसूस होता, उसके पीछे कितने महापुरुषों के अथक
प्रयासों की अमिट छाप है |
ऐसे ही महापुरुषों में एक नाम है – पं.
महामना मदन मोहन मालवीय | जिनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए मुझे आज गौरव की अनुभूति हो रही | जिनके
कर्मो की छाया तले आज हजारो विद्यार्थी स्वयं को शिक्षित होता पा रहे | ”पं. मदन
मोहन मालवीय“ यह कोई व्यक्ति विशेष का नाम नही है, यह एक ऐसी शक्ति थी, जिसने मिट्टी
के उपकरणों से फौलाद के हथियार डालने की क्षमता रखी | काल का चक्र किसी प्रश्रवन
सील सरिता की भाति सदैव गतिमान रहता है | महापुरुष आते है और अपने कर्मो की अमिट
छाप समय क वक्षस्थल पर अंकित कर जाते है, और यह विश्व उन्ही पदचिन्हों का अनुकरण
करता हुआ शनै शनै प्रगति क मार्ग पर अग्रसर होता है | फिर भारतभूमि तो आदिकाल से
ही रत्ना प्रस्वरी रही है | समय समय पर यहा न जाने कितने महापुरुषों ने अवतरित
होकर न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व को मानवता का पाठ पढाया | महान विभूतियों
की महामाला की एक जगमगाती हुई मणि हमारे दास्ताँ के दिनों में भारतभूमि पर अवतरित
हुई | हिन्दू समाज ने इसे “पंडित” कहकर पुकारा तो विश्व ने उसकी “महामना” कहकर
वंदना की | दोस्तों, वह एक ऐसा स्वप्नदृष्टा था, जो अपने समय में 2500 वर्ष पुराने
नालंदा विश्वविद्यालय का स्वप्न देखता था | वह एक स्वप्नदृष्टा था जिसने कभी स्वप्न
में तक्षशिला विश्वविद्यालय को तो कभी विक्रमशिला के विश्व विद्यालय को देखता था |
इस स्वप्न ने उसे प्रेरणा दी एक ऐसा स्वप्न पालने की, जिसने धीरे धीरे मूर्त रूप
लेना शुरू किया | और फिर उस मूर्त में अपने अथक प्रयासों से उसने जान फूंक दी, और
देखते ही देखते काशी में गंगा के तट पर खेतों के बीच से गेरुआ वस्त्र पहन कर वो
कल्पना विशाल रूप धारण करने लगी | लोगो को प्रथम दृष्टि में इस बात पर विश्वास नही
हुआ, परन्तु जब अपनी कड़वाई आंखे धुल कर लोगो ने उस स्वप्न की ओर देखा तो उन्हें
लगा कि ये एक ऐसा स्वप्न था जो अब सच हो चुका है, यह एक ऐसा सच था जिसे अब झुटलाया
नही जा सकता | ऐसा था सृजन हमारे “काशी हिन्दू विश्वविद्यालय” का | दोस्तों, ऐसे
व्यक्ति के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कुछ पंक्तिया मुझे याद आ रही कि –
“मै न बोला किन्तु मेरी आत्मा बोली,
कल्पना की जीभ में भी धार
होती है,
पाँव होते है विचारो के नही
केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार
होती है |”
दोस्तों, बात करे यदि राजनैतिक जीवन की तो महज़
25 वर्ष की आयु में कोलकाता में इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में
उन्होंने अपना पहला भाषण दिया | और देखते ही देखते लगातार चार बार वो इंडियन नेशनल
कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये | और इस तरह उन्होंने सकारात्मक दिशा दी सम्पूर्ण भारतीय
राजनीति को | राजनीति के परिपेक्ष में एक वक्तव्य मुझे याद आता है , जब उनके एक
मित्र ने बड़े ही सहज रूप से यह कह दिया था कि राजनीति में स्वयं का विकास और दूसरे
का विनाश अभीस्ट है तो मालवीय जी ने बड़े ही प्रेम से यह उत्तर दिया कि घृणा है
मुझे ऐसी राजनीति से जिसमे सभी के समान विकास का समान प्रावधान न हो | दोस्तों, यदि
बात की जाए अधिवक्ता जीवन की तो वह ऐसा महान अधिवक्ता था जिसकी सत्य के प्रति लगन
ने 150 देशभक्तों को जो चौरी-चौरा कांड में फसे थे, फांसी के तख्ते से वापस बुला
लिया | अरे भाषा के लिए लड़ा तो देवनागरी लिपि को कानूनी काम काज की भाषा ही बनवा डाला
| मालवीय जी को यह पता था कि अगर दुश्मन से लड़ना है तो उसकी नीतियों में निपुण
होना आवश्यक है | इसीलिए अंग्रेजी हुकूमत का लगातार विरोध करते हुए भी उन्होंने
कभी अंग्रेजी भाषा का विरोध नही किया | और 1909 में स्वयं “द लीडर” पत्रिका का
संपादन किया |
आज सम्पूर्ण विश्व ललायित होकर हमारी ओर देख
रहा है, वह हमसे यह प्रश्न कर रहा है कि मालवीय के उस स्वप्निल भारत को हम कौन सी
दिशा देते है और सम्पूर्ण विश्व यह पुकार लगा रहा है कि -
“ सुख की अति से संतृप्त देश
यह देख रहे है, देखे पंडित का नया देश क्या करता है,
जीता है वह अपना अमोघ अमृत
पीकर या नक़ल हमारी ही करके वह मरता है’
बस यही बिंदु, बस यही बिंदु
जिस पर निर्भर है हार जीत, यह देश ध्वंसकारी युग का क्रेता होगा,
या फूंक मार अम्बर में
कोई महामंत्र, विज्ञान में कलयुग का भारत नेता होगा || "- सौम्या त्रिपाठी
very well written god bless u
ReplyDeletethank you sir :)
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