पदम अलबेला जी के साथ साक्षात्कार
गतिज : वैसे तो महोदय आपके पास कभी शीर्षक की कमी नहीं हुई , फिर भी आपने बुढ़ापेपन के चैलेंज को ही इतनी तवज्जो क्यों दी है ?
महोदय: बुढ़ापा ऐसा है--- कि
"हँसते खेलते बचपन बीता , बीती वो तरुणाई ,
जीवन भर कालिख धोई तब जरा सफेदी आई |
कुछ भी करलो, यह मन भर लो जब तक यह जवानी है ,
किन्तु बुढ़ापा तो देखो नवजीवन की अगुवाई है || "
एक और सन्देश आप उत्थान वालों के लिए ------
"तीरथ छोडो मन को जोड़ो ,कहीं दूर मत जाओ जी ,
माता-पिता की सेवा करके ,जीवन सफल बनाओ जी |"
अंकिता: महोदय आपको कविता लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
महोदय: मैं स्कूल में जब कक्षा पाँच में था तब से मुझे लिखने का शौक था |
"आदत जो ना जाए वही आदत होती है |"
मेरा प्रेम का मतलब सिर्फ वासना नहीं होता ,प्रेम भाई और बहिन में भी होता है ,प्रेम हम माँ-बाप से भी करते हैं ,
प्रेम हम अपने प्रिय से भी करते हैं |
"मेरे जैसा आचरण करें जो बूढ़े लोग ,
उन्हें कभी नही भांपता गृह-क्लेश का मोह |"
"जवानी और बुढ़ापे में बहुत संघर्ष होता है ,
यह मन की मौज-मस्ती है ,चरम उत्कर्ष होता है ,
बुढ़ापे पर मत जाओ यह मन कभी बूढ़ा नहीं होता |"
अंकिता: नवयुवाओं को आप क्या सन्देश देना चाहते हैं ?
महोदय: आप सभी यहाँ किसी न किसी उद्देश्य से आए हैं ,उसे पूरा कीजिये | अपने अपने माता-पिता ,दादाजी की इच्छा जो आपके प्रति है ,
उस पर खरे उतरें और जीवन में एक नेक युवक बनें | आपकी जिंदगी में आंसू नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं हैं क्योंकि आंसुओं का मतलब है संवेदना |
आंसू जो हैं वह हमारी मुस्कानों की ज़मीन है | मुस्कान की खेती आँसुओं के साथ ही होगी | जिस आदमी को रोना नहीं आता उस आदमी को हँसने का भी अधिकार नहीं है |
यदि आँसु आपके पास नहीं है तो आप कुछ भी हो सकते हैं पर एक कवि नहीं हो सकते,एक लेखक नहीं हो सकते | यह जो कविता किसका आपने उल्लेख किया है,
यह जब मैं बी.एड कर रहा था तब उन दिनों किसी को देखकर उसके आँसुओं के लिए लिखी थी |
"कभी जब याद आते हैं तुम्हारे आँख के आँसु ,
मुझे बेहद सताते हैं तुम्हारे आँख के आँसु |
लबों पर मुस्कान आपके देती है ख़ुशी मुझको ,
मुझे बेहद रुलाते हैं तेरी आँख के आँसु |
कभी तुम आँख में अपनी इन्हे लाना ना भूल से ,
किसीका दिल दुखते हैं तुम्हारी आँख के आँसु |"
रिपोर्टर : अंकिता यादव एडिटर :पुष्पक धाकड़
गतिज जैन
महोदय: बुढ़ापा ऐसा है--- कि
"हँसते खेलते बचपन बीता , बीती वो तरुणाई ,
जीवन भर कालिख धोई तब जरा सफेदी आई |
कुछ भी करलो, यह मन भर लो जब तक यह जवानी है ,
किन्तु बुढ़ापा तो देखो नवजीवन की अगुवाई है || "
एक और सन्देश आप उत्थान वालों के लिए ------
"तीरथ छोडो मन को जोड़ो ,कहीं दूर मत जाओ जी ,
माता-पिता की सेवा करके ,जीवन सफल बनाओ जी |"
अंकिता: महोदय आपको कविता लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
महोदय: मैं स्कूल में जब कक्षा पाँच में था तब से मुझे लिखने का शौक था |
"आदत जो ना जाए वही आदत होती है |"
मेरा प्रेम का मतलब सिर्फ वासना नहीं होता ,प्रेम भाई और बहिन में भी होता है ,प्रेम हम माँ-बाप से भी करते हैं ,
प्रेम हम अपने प्रिय से भी करते हैं |
"मेरे जैसा आचरण करें जो बूढ़े लोग ,
उन्हें कभी नही भांपता गृह-क्लेश का मोह |"
"जवानी और बुढ़ापे में बहुत संघर्ष होता है ,
यह मन की मौज-मस्ती है ,चरम उत्कर्ष होता है ,
बुढ़ापे पर मत जाओ यह मन कभी बूढ़ा नहीं होता |"
अंकिता: नवयुवाओं को आप क्या सन्देश देना चाहते हैं ?
महोदय: आप सभी यहाँ किसी न किसी उद्देश्य से आए हैं ,उसे पूरा कीजिये | अपने अपने माता-पिता ,दादाजी की इच्छा जो आपके प्रति है ,
उस पर खरे उतरें और जीवन में एक नेक युवक बनें | आपकी जिंदगी में आंसू नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं हैं क्योंकि आंसुओं का मतलब है संवेदना |
आंसू जो हैं वह हमारी मुस्कानों की ज़मीन है | मुस्कान की खेती आँसुओं के साथ ही होगी | जिस आदमी को रोना नहीं आता उस आदमी को हँसने का भी अधिकार नहीं है |
यदि आँसु आपके पास नहीं है तो आप कुछ भी हो सकते हैं पर एक कवि नहीं हो सकते,एक लेखक नहीं हो सकते | यह जो कविता किसका आपने उल्लेख किया है,
यह जब मैं बी.एड कर रहा था तब उन दिनों किसी को देखकर उसके आँसुओं के लिए लिखी थी |
"कभी जब याद आते हैं तुम्हारे आँख के आँसु ,
मुझे बेहद सताते हैं तुम्हारे आँख के आँसु |
लबों पर मुस्कान आपके देती है ख़ुशी मुझको ,
मुझे बेहद रुलाते हैं तेरी आँख के आँसु |
कभी तुम आँख में अपनी इन्हे लाना ना भूल से ,
किसीका दिल दुखते हैं तुम्हारी आँख के आँसु |"
रिपोर्टर : अंकिता यादव एडिटर :पुष्पक धाकड़
गतिज जैन
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