Friday 19 August 2016

संस्थान में आजादी उत्सव

वन्दनीया मा शारदे! सभी पाठकों को मेरा नमस्कार, यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने संस्थान अटल बिहारी वाजपेयी- भारतीय सूचना प्रौघौगिकी एवं प्रबंधन संस्थान, ग्वालियर के स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रम को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर मिला है। भारतवर्ष के 70वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर  हमारे संस्थान मे एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन हुआ। संस्थान के मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित ध्वजारोहण स्थल पर जब मैं 70वे स्वाधीनता दिवस के प्रातः काल पहुँचा तब वहां का वातावरण बेहद ऊर्जावान,चिरस्मरणीय तथा आनंददायक था। हर किसी के चेहरे पर जोश, ऊर्जा एवं आनंद की स्वतः अनुभूति हो रही थी।मैं अपने साथियों के साथ बैठा कार्यक्रम के शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा था। समय के साथ-साथ मेरी तथा मेरे साथियों की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी।
                                                   प्रातः लगभग 9 बजे हमारे संस्थान के निदेशक एवं मुख्य अतिथिगण के आगमन के साथ ही हमारी प्रतिक्षा की घड़ियां समाप्त हुईं। हमारे संस्थान की रक्षा में सदैव तत्पर रहने वाले सभी रक्षक अपनी पंक्तियों में क्रमबद्ध किसी भारतीय सैनिक की टुकड़ी से कम नही लग रहे थे। अब उनके प्रमुख ने हमारे संस्थान के निदेशक एवम् मुख्य अतिथिगण को सलामी दी। उसके बाद सम्मानित निदेशक जी ने ध्वजारोहण किया। एक स्मरणीय,रोचक तथा अद्भुत पल!!
                                                 अब कार्यक्रम प्रारम्भ हो चुका था। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कुमारी सौम्या अग्रवाल ने 70वें स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रम की बेहद गंभीर भूमिका बांधकर संस्थान की छात्राओं को समूह गान के लिए आमंत्रित किया। उनके मधुर संगीत से वातावरण अत्यंत शानदार हो गया। सभी बालिकाओं ने अपनी मधुर आवाज से दर्शकदीर्घा में ऊर्जा का संचार कर दिया।
                              अब बारी थी प्रशांत कुमार की, अपने ओजस्वी भाषण में प्रशांत ने यह सन्देश दिया कि हम सभी को आजादी की महत्ता समझनी होगी।सबको साथ लेकर आगे बढ़ना होगा ताकि अपने राष्ट्र को नई ऊँचाइयों पर ले जाया जा सके। इसके बाद रमन प्रभाकर ने अपने मधुर संगीत से गंभीर हो चुके वातावरण को आनंददायक बनाने का सफल प्रयास किया।
                                                    जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ रहा था, वैसे-वैसे रोचकता बढ़ती जा रही थी। हर किसी के मन में यही उत्सुकता थी कि अब आने वाला प्रतिभागी अपनी किस कला से परिचय करायेगा? अगले प्रतिभागी थे चिरंजीवी ऋतिक एवं अभिनव। दोनों ही छात्रों ने अपनी नृत्य कला अनूठा प्रदर्शन करते हुए दर्शक दीर्घा में हलचल मचा दी।
                                                    इसके बाद आई०पी०जी० प्रथम वर्ष के छात्रों द्वारा किया गया समूह नृत्य सभी के दिलो को छू गया। अर्जन सिंह एवं समूह नाम से इस समूह ने अपने बेहतरीन तालमेल तथा नृत्यकला का प्रदर्शन किया। इस समूह में मेरे कई सहपाठी अर्जन सिंह, मेहुल भुटालिया, अंकित शर्मा,प्रकाश कुमार,अभिनव एवं रिंग मिलन थे।तैयारी के लिए बेहद कम समय में इस समूह ने जिस तरह का प्रदर्शन किया वह प्रशंसा के लायक था।
अब बारी थी आकाश कुमार सोनी की जिन्होंने अपनी संगीत कला से स्वाधीनता दिवस के 70वें प्रातः काल को अत्यंत ऊर्जावान बना दिया। उन्होंने अपनी मधुर आवाज तथा वाद्य यंत्र पर कुशलता से नाचती उंगलियों के जादू से सभी दर्शकों में आजादी का जोश भरने का प्रयास किया।अब बारी थी संस्थान के निकट स्थित विद्यालय के छात्र छात्राओं की। देखने में नन्हे एवम् छोटे लगने वाले बालक बालिकाओं ने अपनी नृत्य कला का ऐसा प्रदर्शन किया कि दर्शक दांतो तले ऊँगली दबा कर रह गए।
                                   अब कार्यक्रम अपनी रफ्तार पकड़ चुका था। संस्थान की छात्राओं ने देशभक्ति से परिपूर्ण फ़िल्म फना के गीत  “देश रंगीला रंगीला……………देश मेरा रंगीला” पर अत्यंत मनोहारी नृत्य का प्रदर्शन किया। अब कार्यक्रम की संचालिका सौम्या ने मुख्य अतिथि के०एस०कुशवाहा को अपने वक्तव्य के लिए आमंत्रित किया।अपने ओजस्वी एवम् गरिमापूर्ण भाषण में उन्होंने हम सभी छात्रों का मार्गदर्शन किया।
                             कार्यक्रम के अंतिम चरण में संस्थान के छात्र रोहित कुमार ने गिटार पर अपनी उँगलियों तथा दर्शकों पर अपनी आवाज का जादू बेहद आनंददायक तरीके से बिखेरा। भैया रोहित ने सभी भारतीयों में आजादी का जोश भर देने वाले गीत “है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ” को गाया।
                    अब कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति के रूप में ऋषभ पटेल ने अपनी ओजस्वी वाणी में राम प्रसाद बिस्मिल रचित जोशीली कविता “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है” गाकर वातावरण को ऊर्जावान बना दिया। इसके पश्चात कार्यक्रम की संचालिका सौम्या ने अंत में संस्थान के निदेशक ऐस०जी० देशमुख को सभी छात्रों के मार्गदर्शन के लिए आमंत्रित किया।आदरणीय निदेशक महोदय ने अपने गंभीर, मार्मिक तथा प्रेरणादायी सन्देश ने जो कुछ भी कहा वह हम सभी के लिए स्मरणीय है। निदेशक महोदय के वक्तव्य के साथ ही कार्यक्रम का समापन हो गया।


                                                                   -आर्यन सचान
                                                                                                            ( आई पी जी प्रथम वर्ष)

Sunday 14 August 2016

मुक्त भारत !!!

तुलसीदास ने  लिखा है-

"पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं ।"
पराधीन को स्वपन में भी सुख नही मिलता।

वैसे तो आजादी शब्द में सम्पूर्ण आकाश निहित है पर यदि  भारतवर्ष के सन्दर्भ में कहे तो 15 अगस्त 1947 आज़ादी  मिलने वाला वो दिन माना जाता है जिस दिन  भारतवर्ष ने ब्रिटिश शासन की गुलामी की जंजीरों से मुक्ति पायी थी ।

Long years ago we made a tryst with destiny, and now the time comes when we shall redeem our pledge, not wholly or in full measure, but very substantially. At the stroke of the midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom.

15 अगस्त 1947 को आजादी की घोषणा के लिये बोले गये पंडित जवाहर लाल नेहरू के वो शब्द जिन्होने समस्त जन साधारण के अन्दर चेतना और उमंग की लहर का प्रसार किया ।

आजादी का वो स्वर्णिम दिवस जिसके स्वपन भर के लिए भारतीय युवकों, क्रान्तिकारियों, राजनेताओं ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। आज 15 अगस्त 2016 को हम भारतवासी अपनी स्वतंत्रता की 70वीं वर्षगाँठ मना रहें है।
यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी की आज भारत की सारी उपलब्धियों, कीर्ति, वैश्विक विकास, सभी यदि सम्भव हो पाएँ है तो स्वाधीनता के कारण।

सदियों से भारत अंग्रेजों की दासता में था, उनके शोषण व  अत्य्चार से भरी नीतियों के कारण सम्पूर्ण देश की जनता त्रस्त थी। स्वाधीनता के स्वपन का पहला बिगुल बजा 1857 की क्रांति के साथ, वर्षों चले आन्दोलन में हमने वीरता के वो अनुभव देखे जो भारतीय इतिहास को हमेशा गौरवमयी बनाए रखेँगे। माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी रचना "पुष्प की अभिलाषा" में  कहा था..
"मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढाने, जिस पर जाए वीर अनेक।

क्रांतिकारियों के बलिदान का मूल्य आँकने का विचार लाना भी अनुचित होगा। एक ओर महात्मा गाँधी, पंडित नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओ के अहैंसिक आंदोलन व दूसरी ओर भगत सिंह , आजाद के बलिदान से भड़की क्रांति के ज्वाला ने अंग्रेजों को भारत की स्वतंत्रता के प्रस्ताव पर विचार करने पर विवश कर दिया।

तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड माउंटबेटेन ने भारतीय राजनीति के ऐतिहासिक निर्णय की औपचारिक घोषणा की, पर केवल यह आजादी नही थी, ब्रिटिश सरकार ने भारत नही अपितु 565 रियासतों को स्वतन्त्र घोषित करने का निर्णय किया था। पूरा देश यूँ तो एक डोर में बँधा माना जाता था परंतु स्वाधीनता की घोषणा के पूर्व ही हर रियासत एक स्वतन्त्र राष्ट्र बनने का स्वपन देखने लगी थी।

सरदार पटेल व मेनन जैसे कूटनीतिक राजनेताओं ने रियासतों को जोड़ने का काम पूर्ण किया। पर इसी घटनाक्रम में विभाजन का सामना भी करना पड़ा। धर्म के नाम पर दो विभाजित हिस्सों में दो नए राष्ट्रों को आजादी मिली - भारत व पकिस्तान। भारत के कवियों ने अपनी कलम को क्रांति की तलवारों के समकक्ष चलाया था, महाकवि दिनकर, जय शंकर प्रसाद ने उस दौर में ऐसा लिखा था जिसे आज भी पढ़कर देशभक्ति उभर उभर आती है।


हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं – बढ़े चलो बढ़े चलो
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी
अराति सैन्य सिंधु में, सुबाड़वाग्नि से जलो
प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो बढ़े चलो
– जयशंकर प्रसाद
आज स्वाधीनता दिवस के अवसर पर हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य बनता है की उन शहीदों को नमन अर्पित करें जिनके बलिदानों के कारण आज खुली हवा में हम साँस ले पा रहें है, अपने देश के निर्णयों में भागीदारी निभा पा रहें हैं।

पर एक ओर प्रश्न यह उठता है कि क्या समय के साथ हम स्वराज की परिभाषा को अपने अनुसार बदल रहें हैं ? क्या  हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वराज के स्वपन में भ्रष्ट्राचार ओर भेदभाव की कल्पना भी की थी ? क्या भारत का वही  प्रारूप आज हमारे सामने है जिसके लिये युवाओं ने फँसी के फंदे को गले लगा लिया था? ये प्रश्न शायद कुछ साहित्यिक लगे पर इनका उत्तर शायद आने वाली पीढियों के भविष्य नींव बने...

"पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज,
सात वर्ष हो गए राह में अटका कहाँ स्वराज?"
- दिनकर