"जिन्दगी"
हर एक दिन एक किताब के
पन्नो की तरह पलट रहे है हम , कुछ पर दिल मुस्कुरा उठता तो कुछ पर हो जाती आँखे नम
, पर क्या कभी किसी ने इस कहानी के पीछे छुपे भावार्थ को जानने की कोशिश की है |
इस धरती पर अपने अस्तित्व के उद्देश्य को जानने की कोशिश की है | क्या करने आये है
और क्या करते जा रहे | जिन्दगी का सच आखिर है क्या ? जो चाहा क्या उसे पाने की
कोशिश पूरी शिद्दत से की या उसका ना मिलना भाग्य में लिखा कहकर टाल दिया | जो पाया
क्या कभी सोचा था , जो सोचा था वो मिला या नही , क्या कभी स्वयं से पूछा अगर मिला तो
कैसे और क्या सच में यही सोचा था और अगर नही तो क्यूँ | जो मिला क्या वो रास आ रहा
है | क्यों अक्सर खोयी हुई चीज़े याद आती है और पायी हुई चीज़े सम्भाली जाती नही |
क्यों अजीब सी पहेली है जिंदगी जिसे कोई सुलझा पाता नही | जीवन में कभी समझौता
करना पड़े तो क्यों अक्सर लोग पीछे हट जाते | क्यों नही समझते कि -
“ झुकता वही है
जिसमे जान होती है, अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है |”
जिन्दगी जीने के दो तरीके
होते है – पहला जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो और दूसरा जो हासिल है उसे पसंद
करना सीख लो |
“जिंदगी जीना आसान नही होता, बिना संघर्ष कोई महान नही होता,
जब तक
न पड़े हथौड़े की चोट, पत्थर भी भगवान नही होता ||”
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है, कभी हसती
है कभी रुलाती है, पर जो हर हाल में खुश रहते है, जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है |
छोटी सी जिंदगी का सच इन्ही छोटे छोटे सवालो में कही छिपा है |
“ चेहरे की हसी से
हर गम चुराओ, बहुत कुछ बोलो पर कुछ न छुपाओ,
खुद न रूठो कभी पर सबको मनाओ, राज़ है जिंदगी
का ये बस जीते चले जाओ ||”