Saturday, 22 August 2015

जिन्दगी

                                   "जिन्दगी"
हर एक दिन एक किताब के पन्नो की तरह पलट रहे है हम , कुछ पर दिल मुस्कुरा उठता तो कुछ पर हो जाती आँखे नम , पर क्या कभी किसी ने इस कहानी के पीछे छुपे भावार्थ को जानने की कोशिश की है | इस धरती पर अपने अस्तित्व के उद्देश्य को जानने की कोशिश की है | क्या करने आये है और क्या करते जा रहे | जिन्दगी का सच आखिर है क्या ? जो चाहा क्या उसे पाने की कोशिश पूरी शिद्दत से की या उसका ना मिलना भाग्य में लिखा कहकर टाल दिया | जो पाया क्या कभी सोचा था , जो सोचा था वो मिला या नही , क्या कभी स्वयं से पूछा अगर मिला तो कैसे और क्या सच में यही सोचा था और अगर नही तो क्यूँ | जो मिला क्या वो रास आ रहा है | क्यों अक्सर खोयी हुई चीज़े याद आती है और पायी हुई चीज़े सम्भाली जाती नही | क्यों अजीब सी पहेली है जिंदगी जिसे कोई सुलझा पाता नही | जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो क्यों अक्सर लोग पीछे हट जाते | क्यों नही समझते कि - 
          “ झुकता वही है जिसमे जान होती है, अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है |” 
जिन्दगी जीने के दो तरीके होते है – पहला जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो और दूसरा जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो | 
         “जिंदगी जीना आसान नही होता, बिना संघर्ष कोई महान नही होता, 
          जब तक न पड़े हथौड़े की चोट, पत्थर भी भगवान नही होता ||” 
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है, कभी हसती है कभी रुलाती है, पर जो हर हाल में खुश रहते है, जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है | छोटी सी जिंदगी का सच इन्ही छोटे छोटे सवालो में कही छिपा है | 
         “ चेहरे की हसी से हर गम चुराओ, बहुत कुछ बोलो पर कुछ न छुपाओ,
         खुद न रूठो कभी पर सबको मनाओ, राज़ है जिंदगी का ये बस जीते चले जाओ ||” 

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