Sunday, 2 February 2014

हसरते

जो तुम साहिल की बाते सुन पाती

तो तुम जान लेती मै क्या सोचता हूँ ||

वो विधा जो तुम्हे भी जान पाती ,

तो तुम जान लेती मै क्या सोचता हूँ ||

वो आवाज तुमको भी जो भेद जाती ,

तो तुम जान लेती में क्या सोचता हूँ ||

मासूमियत का जो तुम्हारे पर्दा सरकता ,

खिड़कियो से आगे भी देख पाती ,

आँखों से आदतों की जो पलके हटाती,

तो तुम जान लेती मै क्या सोचता हूँ ||

 

 

जो ख्वाब देखे मैंने काश उन्हें जान जाती ,

मेरी मंजिलो को पाने में साथ निभा पाती ,

मेरी तरह होता अगर खुद पर जरा भरोसा

तो कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आती ||

महक गगन की जो चूमती तुम्हे ,

ख्वाइशे तुम्हारी नया जन्म पाती ,

खुद दुसरे जन्म में मेरी  हम्न्फ्ज बनने ,

कुछ दूर तुम भी साथ साथ आती ||

जो मेरे चक्षु में बहते नीर को देख पाती ,

तो मेरी भावनाओकी धारा को समझ पाती ,

तब कुछ दूर तुम भी साथ साथ आती||

तब कुछ दूर तुम भी साथ साथ आती ||

1 comment: